पिछले कुछ दिनों से आप लोगों के द्वारा मुक्तक की पेशकश के लगातार आग्रह को अब टाल पाना मेरे लिये संभव नहीं हो पा रहा है. अगले कुछ माह के लिये मैं मुक्तक महोत्सव मना रहा हूँ. इस उत्सव के दौरान आपकी सेवा में हर रोज अनेकों स्व-रचित मुक्तक पेश करुँगा. पहले पढ़ने के लिये और फिर अगर संभव हुआ तो इसी क्रम में अपनी आवाज में गाकर भी. आप इन्हें इत्मिनान से पढ़े, इस लिये एक एक करके पोस्ट करुँगा ताकि आप इन मुक्तकों का संपूर्ण आनन्द ले सकें. आशा है टिप्पणियों के माध्यम से आप इस महोत्सव को सफल बनायेंगे.
प्रस्तुत मुक्तक इसी महोत्सव का भाग है.
चित्र आँखों में मेरी बनाते रहे याद के प्रष्ठ कुछ फ़डफ़शाते हुए
रंग ऊदे, हरे,जामनी कत्थई भित्तिचित्रों से मन को सजाते हुए
मेरी पलकों के कोरों पे अटका हुअ चित्र है एक उस साँझ का प्रियतमे
दोनों हाथॊं में पानी लिये अर्घ्य का चौथ के चन्द्रमा पर चढाते हुए
2 comments:
अच्छा लग रहा है इस महोत्सव को देखकर. आप बहुत अच्छा लिखते हैं.
-रविन्द्र
बहुत खूब।
Post a Comment