Monday, March 26, 2007

खेद! महा खेद!! मुक्तक महोत्सव रुका!

बड़ी उम्मीदों, मंशाओ और हर्षोल्लास के साथ अभी परसों रात ही तो हमने 'मुक्तक महोत्सव' की घोषणा की थी. बहुत महेनत के साथ पिछले ६/७ माह में तैयारी की थी. हर रोज नित नियम के साथ ५ से ७ मुक्तक तैयार किये यानि कुल मिला कर लगभग १००० मुक्तक. दफ्तर जाने में नागा पड़ा, मगर मुक्तक लेखन में एक दिन भी नहीं. छोटी मोटी नुमाईश होती, तो भी चल जाता कि किसी दिन न भी लिखें मगर हम तो महोत्सव मनाने की तैयारी कर रहे थे-मुक्तक का महाकुँभ-मानो बारह वर्षों में एक बार होना है. बस एक उन्माद सा छाया था.

हाँ साहब, बिल्कुल महाकुँभ सा माहौल याद आ गया इलाहाबाद का. महिनों से हर तरफ कुँभ ही कुँभ. जहाँ नजर पड़े, बस कुँभ और उसकी तैयारी. सड़कें रोक दी गईं, घाट तक पहुँचने के मार्ग परिवर्तित कर दिये गये. हर तरफ विद्युत आपूर्ति में कटौती, ताकि घाट जगमगाता रहे, पूरा शासन तंत्र जूझ पड़ा. बाकि चीजों से मतलब नहीं, बस कुँभ. शहर में पानी की सप्लाई नियंत्रित कर दी गई, सब घाट की तरफ प्रवाहित कर दी गई. आम जनता के लिये, आम जनता की आस्था के लिये, आम जनता को परेशानी में डाल कर, वाह!! क्या पंडाल सजाये जाते हैं!! क्या घाट सजाये जाते हैं!! अब महोत्सव है तो यह सब तो होगा ही. सब को परेशानी भी होगी, मगर फिर भी उत्सव मनाया जायेगा.जनता के सामूहिक रिसोर्सेज यानि की संसाधनों, उनकी सुविधायें, उनके अधिकार सभी कुछ उनके लिये ही खटाई में पड़ जाते हैं मगर आस्था का प्रश्न है, जरुर मनाया जायेगा, मनाना भी चाहिये और हर बार पिछली बार से वृहद स्तर पर.


हर तरफ विद्युत आपूर्ति में कटौती, ताकि घाट जगमगाता रहे, पूरा शासन तंत्र जूझ पड़ा. बाकि चीजों से मतलब नहीं, बस कुँभ. शहर में पानी की सप्लाई नियंत्रित कर दी गई, सब घाट की तरफ प्रवाहित कर दी गई. आम जनता के लिये, आम जनता की आस्था के लिये, आम जनता को परेशानी में डाल कर, वाह!! क्या पंडाल सजाये जाते हैं!! क्या घाट सजाये जाते हैं!! अब महोत्सव है तो यह सब तो होगा ही. सब को परेशानी भी होगी, मगर फिर भी उत्सव मनाया जायेगा.


इसी तरह हमने भी बड़े अरमानों के साथ मुक्तक महोत्सव की तैयारी की और शुरु हो गये परसों से मनाना. जनता की फरमाईशा पर इसका आयोजन किया गया. वही चिट्ठाकार जो लिखते हैं, नारद से होते हुये हम उन तक पहुँचते हैं और पढ़ते हैं. जवाब में वो भी नारद के मार्ग से होते हुये हम तक पहुँचते हैं और पढ़ते हैं. हौसला बढ़ाते हैं, फरमाईशें करते हैं. उसी फरमाईश के चलते इस महोत्सव का आयोजन किया गया.

अभी एक पूरा दिन भी नहीं बीता था कि कनाडा से उड़न तश्तरी घरघराती हुई हमारी छत पर उतरी और कहने लगी, अरे भाई साहब, यह क्या गजब कर रहे हैं? नारद की सामूहिक भूमि पर आप तो पूरा अधिग्रहण कर बैठ गये और पता चला है ऐसा कई माह तक चलेगा. बाकी के लोगों का क्या होगा? वो कहाँ जायें? वो आते हैं और बस आप धकिया दे रहे हैं, यह कैसा उत्सव?

हमने कहा कि "सुनो भई, उत्सव में तो ऐसा ही होता है और उस पर से, यह तो महोत्सव है. जनता की आस्था है और उनकी फरमाईश है, तो तकलीफ तो उठानी पड़ेगी. उनकी तो आदत है, वो तो गैर फरमाईशी में भी रोज उठा ही रहे हैं तो हम तो फरमाईशी महोत्सव मना रहे हैं, इसमें आपको क्या परेशानी है? हद करते हो आप भी. क्या मन का लिख भी नहीं सकते. काहे नियंत्रण की बेड़ियां पहना रहे हो. जितनी बार लिखेंगे, उतनी बार ही तो छपेंगे न!! आप भी लिखो."


एक ही बात सुनी पोस्ट दर पोस्ट दिन भर
हमने कुछ मुक्तक सुनाये तो बुरा मान गये...


ऊड़न तश्तरी सकपका गई. हम समझ गये कि वो नारद की तरफ से आई थी हमें रोकने. जब हमने पूछा तो उगल भी दिये कि "हाँ, नारद से बात तो हुई है आज दिन में." फिर हमने देखा कि नारद के कर्ताधर्ता जीतू भाई भी दिन में आकर अपनी राय जाहिर कर गये हैं.उनकी राय भी काबिले गौर थी.



बाकी सब तो ठीक है, लेकिन ये बताया जाए, कि सारे मुक्तक एक ही दिन काहे पब्लिश के जा रहे हो। अमां यार! एक दिन मे एक करो, दो करो, इत्ते करोगे तो लोग बवाल कर देंगे। कंही ऐसा ही ना हो कि लोग मुक्तक का नाम सुनते ही भाग खड़ें हो।
हम इत्ती मुश्किल से लोगों को पकड़ पकड़ तक नारद पर ले आएं, और भगाएं, ऐसा जुल्म ना करो माईबाप।



उड़न तश्तरी तो घरघरा कर लौट गई और न जाने उस घरघारहट के साथ कितने प्रश्न छोड़ गई. हम आत्म मंथन और चिंतन में लीन हो गये.

लगने लगा कि यह उचित नहीं. नारद एक सामूहिक संसाधन है. एक सार्वजनिक मंच है. सबका इस पर बराबरी का अधिकार है. इसका दुरुपयोग सिर्फ़ अपनी महत्ता जाहिर करने के लिये उचित नहीं है. भले ही कुछ लोग इस बात को समझने से इंकार करें मगर सभी को बराबरी से नारद के प्रथम पृष्ठ पर कुछ समय तक बने रहने का अधिकार है ताकि पाठक उन तक पहुँच सकें और उनकी पोस्ट के विषय में जान सकें. अगर एक ही व्यक्ति अपनी ढ़ेरों पोस्ट एक के बाद एक करता चला जायेगा तो अन्य लोगों को तो मौका ही नहीं मिलेगा, थोड़ी देर के लिये भी नहीं कि वो प्रथम पृष्ठ पर रह पाये. हालांकि नारद ने प्रथम पन्ने पर पोस्टों की संख्या काफी बढ़ा दी है मगर फिर भी एक संख्या तो है ही.


नारद एक सामूहिक संसाधन है. एक सार्वजनिक मंच है. सबका इस पर बराबरी का अधिकार है. इसका दुरुपयोग सिर्फ़ अपनी महत्ता जाहिर करने के लिये उचित नहीं है. भले ही कुछ लोग इस बात को समझने से इंकार करें मगर सभी को बराबरी से नारद के प्रथम पृष्ठ पर कुछ समय तक बने रहने का अधिकार है ताकि पाठक उन तक पहुँच सकें और उनकी पोस्ट के विषय में जान सकें. अगर एक ही व्यक्ति अपनी ढ़ेरों पोस्ट एक के बाद एक करता चला जायेगा तो अन्य लोगों को तो मौका ही नहीं मिलेगा, थोड़ी देर के लिये भी नहीं कि वो प्रथम पृष्ठ पर रह पाये.



इन्हीं सब बातों पर चिंतन करते हुये हम ने निर्णय लिया कि यह महोत्सव, जो कि पाठकों की फरमाईश पर मनाया जा रहा था, उसका स्वरुप उन्हीं पाठकों की सहूलियत और संसाधनों की सीमितता को देखते हुये बदल दिया जाये ताकि सभी को नारद के इस्तेमाल का बराबरी का मौका मिले. अब नये स्वरुप में यह महोत्सव जल्द ही फिर आयेगा आपके सामने. तब तक के लिये इंतजार करिये.

5 comments:

Geetkaar said...
This comment has been removed by the author.
Udan Tashtari said...

गीतकार जी

आपने बहुत ही अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है. सामूहिक संस्धानों का दुरुपयोग हो यह कतई सही नहीं है और फिर लोग तो उसका दुरुपयोग नहीं वरन उसके साथ बलात्कार कर रहे हैं. आपने जो उदाहरण पेश किया है और इतने पसंदिदा कार्यक्रम को रोक कर जो एक मिसाल दी है वो काबिले तारीफ है. आपके इस कार्य पर मैं श्रृद्धा सुमन अर्पित करता हूँ और आपको साधूवाद देता हूँ. शायद सभी चिट्ठा लेखक अपनी इस नैतिक जिम्मेदारी को समझेंगे और अपना व्यवहार संयमित रखेंगे, यही आशा है. आप की यह आदर्श पोस्ट अपने आप में एक मिसाल है. यह चिट्ठाजगत के इतिहास का हिस्सा बनेगी, ऐसा मेरा विश्वास है.

अनूप शुक्ल said...

उदाहरण तो अनुकरणीय है लेकिन महोत्सव चालू रहना चाहिये। नारद के अनुरूप ,एक दिन एक पोस्ट हो। लेकिन प्रकाशन होते रहना चाहिये। हमने अभी तो शुरू किया पढ़ना और अभी बंद! ये अच्छी बात नहीं।

Anonymous said...

मेरे सुझाव है कि आप इसे बन्द ना करें ।
जितने भी मुक्तक आप एक दिन में अलग -अलग पोस्ट के रूप में प्रकाशित करते हैं, उनकी जगह एक ही पोस्ट में उन्हे लिख दें,और शीर्षक दे दें "मुक्तक संख्या फलां से फलां तक"। इससे पोस्ट भी एक ही बार नारद पर आयेगी, और पढने के इच्छुक आराम से आकर पढ लेंगे ।

परमजीत सिहँ बाली said...

नितिन बागला जी की बात से मै भी सहमत हूँ ।यदि आप किसी एक विषय पर लिख रहे हैं तो ऎसा करना ही उचित होगा।