Wednesday, September 25, 2013

हम युग के साहित्यकार हैं

आओ हम से परिचय कर लो, हम युग के साहित्यकार हैं
 
विकीपीडिया लेकर चलते हैं हम अपने बायें हाथ में
उसमें से कट पेस्ट किया करते हैं हम झट बात बात में
हमसे ज्यादा बड़ा लिखाड़ू, नहीं ढूँढ़ने पर मिल पाये
पूरा उपन्यास लिख देते हैं हम चढ़ती हुई रात में
 
गीतकार तो हैं ही, हम ही इकलौते संगीतकार हैं
 
विषय वस्तु हो चाहे कोई, हम अपनी हैं टाँग अड़ाते
ज्ञान ध्यान की थोथी बातें देते हुये तर्क समझाती
अपने साथ लिये चलते हैं हम आधा दर्जन चेलों को
मौका पाकर जोकि हमारी स्तुतियाँ औ’ वन्दन हैं गाते
 
इस दुनिया में तुम सच मानो, हम पन्द्रहवें चमत्कार हैं
 
दाल भात में इक हम ही तो मूसरचन्द बना करते हैं
मौका,मंच, बात हो कोई हम निर्बन्ध बहा करते हैं
ढोल पीट्कर जतलाते हैं सदा विद्वतायें हम अपनी
हमसा ज्ञानी नहीं कोई भी, हम बेबाक कहा करते हैं
 
भाषा और व्याकरण आकर हमको करते नमस्कार हैं
 
हम में बड़े तार्किक, करके तर्क कहो तो विश्व हरा दें
अपनी मर्जी के मालिक, सूरज चन्दा का दास बता दें
क्षीर-नीर में, दिवस-निशा में भेद समूचे अर्थ हीन हैं
जो खेमे में आये हमारे, उसको ही हम बुर्ज चढ़ादें
 
लोग हमारे चरण-चुम्बनों को बरसों से तलबगार हैं

Monday, September 23, 2013

काम रचनाकार का

प्रतिक्रियायें कोई दे अथवा न दे, निर्भर उसी पर
काम रचनाकार का वह धर्म को अपने निभाये
 
काम माली का विकसते फूल क्यारी में सँवारे
ये न सोचे वह कभी जा देव के द्वारे चढ़ेगा
या किसी के कुन्तलों में एक दिन होगा सुशोभित
या किसी की डायरी के मध्य में जाकर रहेगा
 
जो नियति उसकी, उसे मिल जायेगा निश्चित यथावत
किसलिये फिर वह दृगों में आस का काजल लगाये
 
गीत,कविता छन्द दोहे, और मुक्तक या कहानी
बात जब नूतन कहेंगे, पायेंगे तब ही प्रशंसा
सिर्फ़ खानापूर्ति या फिर महज लिखने को लिखे पर
मिल रही जो टिप्पणी, उसमें छुपी कुछ और मंशा
 
सोच अक्सर पूछती है, अर्थ से वंचित कथन क
लड़खड़ाते पांव को वह किस तरह रस्ता दिखाये


वाह के मोहताज होकर माँग लेना तालियों कुछ
या निरर्थक शब्द को पूँजी समझ कर ऐंठ जाना
एक टॄटा आईने को ही प्रभावित कर सका है
एक पल ठिठका नहीं ऐसे कथन पर आ ज़माना

लेखनी पर आप ही आ स्वर्ण की परतें चढ़ेण्गी
जब कि रचना शब्द आपने वास्ते खुद ही जुटाये