Monday, October 23, 2017

ज्योति के पर्व पर 2017

आज धनवंतरी के कलश से छलक
भेषजों की सुधा अञ्जुरी में भरे
लक्ष्मियाँ धान्य, धन और गृह की सदा
आपका पंथ अनुकूल करती रहें
स्वर्ण मुद्राओं की खनखनें नित्य ही
छेडती हों नई सरगमो की धुने
आज के पर्व पर आपके वास्ते
हम सभी बस यही कामनाएं करें 


भोर की गुनगुनी स्वर्णवर्णी खिली
धूप सी कान्ति से तन दमकता रहे
चौदहवीं सीढ़ियों पर चढ़े चांद की 
ज्योत्सनाओं से मन निखरता रहे
ओस में भीग कर के नहाई हुई
पंखुड़ी सी सजे आपकी भावना
अग्रहणी व्योम में सूर्य बन कर चढ़ी
आपकी कीर्ति प्रतिपल चमकती रहै

ज्योति के पर्व पर बुध्दि के देव का
आपके शीश आशीष बरसा करे
कंगनों की, कमलवासिनी के खनक
छेडे अंगनाई में नित नई सरगमें
शारदा के करों में थमी पुस्तिका
शब्द सारे प्रियंवद बिखेरे सदा
कामना है यही होके अनुकूल ही
आये दीपावली से भविष्यत समय
 


दूध मिश्री दही और माखन लिएआज छप्पन समुचे सजे भोग आ
ब्रज के गिरिश्रृंग से व्यंजनों से भरी आये छत्तीस सोनाजड़ी थालियां
सात लोको की जो परिक्रमा का है फल, सात पल में मिले आज वह आपको
और परिजन रहे आपके आ निकट नित्य जगमग करें आई। दीवालिया