परिणति, जलते हुए तवे पर गिरी हुई पानी की बूँदे
मन की आशा जब यथार्थ की धरती से आकर टकराये
अपने टूटे सपनों की अर्थी अपने कांधे पर ढोते
एकाकीपन के श्मशानों तक रोजाना ले जाते हैं
चुनते रहते हैं पंखुरियां मुरझा गिरे हुए फूलों की
जो डाली पर अंगड़ाई लेने से पहले झर जाते हैं
पथ की धूल निगल जाती है पदचिह्नों के अवशेषों को
सशोपंज में यायावर है, दिशाज्ञान अब कैसे पाये
सजी नहीं है पाथेयों की गठरी कब से उगी भोर में
संध्या ने दरवाज़ा खोला नहीं नीड़ जो कोई बनता
संकल्पों को लगीं ठोकरें देती नहीं दिलासा कोई
उमड़े हुए सिन्धु में बाकी नहीं कहीं पर कोई तिनका
बिखर गये मस्तूल, लहर ने हथिया लीं पतवारें सारी
टूटी हुई नाव सागर में, कब तक और थपेड़े खाये
शूल बीनते छिली हथेली में कोई भी रेख न बाकी
किस्मत के चौघड़िये मे से धुल बह गये लिखे सब अक्षर
बदल गई नक्षत्रों की गति, तारे सभी धुंध में लिपटे
सूरज निकला नहीं दुबारा गया सांझ जो अपने घर पर
अधरों के स्वर सोख लिये हैं विद्रोही शब्दों ने सारे
सन्नाटे की सरगम लेकर गीत कोई कैसे गा पाये
सने अभ्यागत बनकर अब आते नहीं नयन के द्वारे
खामशी का पर्वत बनकर बाधा खड़ा हुआ आंगन में
अभिलाषा का पथ बुहारते क्षत विक्षत होती हैं साधें
मन मरुथल है, बादल कोई उमड़ नहीं पाता सावन में
पतझर बन कर राज कुंवर, सता ले बैठा सिंहासन पर
संभव नहीं अंकुरित कोई अब मुस्कान कभी हो पाये
Tuesday, January 19, 2010
Monday, January 4, 2010
आज मुझे कुछ शब्द चाहिये
जी हाँ मुझको शब्द चाहिये
शब्द कि जिनकी संरचना में छुपे हुए हों कोई मानी
कोरे खाकों वाले केवल नहीं चाहता मैं बेमानी
शब्द कि जिनसे उड़ न पाये गंध तनिक भी वासीपन की
शब्द उतर जायें सीने में,जो प्रतिध्वनि बन कर धड़कन की
मुझको ऐसे शब्द चाहिये
शब्द हाँ मुझे शब्द चाहिये
शब्द कभी न लिखे गये हों,आकॄति में ढलने से पहले
शब्द,पीर का हर इक अक्षर जिनकी बाँह थाम कर बहले
शब्द कर सकें जो संप्रेषित मन में उठते उद्गारों को
शब्द मुट्ठियों में जो सीमित कर दे अगणित संसारों को
बस ऐसे कुछ शब्द चाहिये
शब्द हाँ मुझे शब्द चाहिये
शब्द कि जिनसे फूटें अंकुर आखों में कोमल सपनों के
शब्द बन सकें सावन के घन जो मन की गहरी तपनों के
शब्द निरन्तर गति पाता हो जिनसे अभिलाषा का निर्झर
शब्द तोड़ दें अविश्वास का सन्नाटा जो छाया भू पर.
बस कुछ ऐसे शब्द चाहिये
जी हाँ मुझको शब्द चाहिये.
शब्द कि जिनकी संरचना में छुपे हुए हों कोई मानी
कोरे खाकों वाले केवल नहीं चाहता मैं बेमानी
शब्द कि जिनसे उड़ न पाये गंध तनिक भी वासीपन की
शब्द उतर जायें सीने में,जो प्रतिध्वनि बन कर धड़कन की
मुझको ऐसे शब्द चाहिये
शब्द हाँ मुझे शब्द चाहिये
शब्द कभी न लिखे गये हों,आकॄति में ढलने से पहले
शब्द,पीर का हर इक अक्षर जिनकी बाँह थाम कर बहले
शब्द कर सकें जो संप्रेषित मन में उठते उद्गारों को
शब्द मुट्ठियों में जो सीमित कर दे अगणित संसारों को
बस ऐसे कुछ शब्द चाहिये
शब्द हाँ मुझे शब्द चाहिये
शब्द कि जिनसे फूटें अंकुर आखों में कोमल सपनों के
शब्द बन सकें सावन के घन जो मन की गहरी तपनों के
शब्द निरन्तर गति पाता हो जिनसे अभिलाषा का निर्झर
शब्द तोड़ दें अविश्वास का सन्नाटा जो छाया भू पर.
बस कुछ ऐसे शब्द चाहिये
जी हाँ मुझको शब्द चाहिये.
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