प्राची और प्रतीची उत्तर दक्षिण सब ने मिल कर भेजे
एक एक कर सुमन पिरोकर अपने भाव भरे संदेशे
रजत जयन्ती के आँचल पर वे कढ़ गए बूटियाँ बन कर
वर्ष हुए उनतीस पंथ में जीवन के जो साथ सहेजे
लगता मगर बात कल की है जब परिचय ने जोड़े धागे
अग्निसाक्षी करके हमने जब अपने अनुबंधन बांधे
आंधी बिजली धूप पौष सावन सब मिल कर बंटे निरंतर
निर्णय रहे एक ही हमने जब जब आराधन आराधे
फिर भी जाने क्यों लगता है हर इक दिन कुछ नया नया सा
उगी भोर का पाखी कह कर कुछ अनचीन्हा आज गया सा
फिर से नूतन हो जाते हैं सात पगों के वचन सात वे
जिनकी धुन में जीवन ने पाया था सच में अर्थ नया सा
Monday, November 22, 2010
Thursday, November 11, 2010
हर दिवस ही यहाँ पर विजय पर्व हो.
नाम यौं विश्व में जगमगाने लगा
कुछ सितारे उगे आ गगन में नये
आँख में जो बसे स्वप्न बूढ़े हुए
यूँ लगा पी सुधा फिर युवा होगये
आस के इन्द्रधनुषी पटल ने कहा
अब ये आश्वासनों का भी सन्दर्भ हो
हर दिवस ही यहाँ पर विजय पर्व हो.
यूँ लगा इक नई भोर उगने लगी
रुत सुहानी हुई नव वधू की तरह
पाखियों के नये राग छिड़ने लगे
गन्ध से लग रहा भर रही हर जगह
और अँगनाई कहने लगी सांझ को
उसके प्रांगण में आ गान गन्धर्व ह
हर दिवस ही यहाँ पर विजय पर्व हो.
सूर्य की हर किरण छाँटने लग गई
जो तिमिर का खड़ा मूर्ति बन कर अहम
हर गलत प्रश्न हल हो गया आप ही
बह गया मन से हिम की शिला सा वहम
इस डगर पर चले कोई भी मैं नही
न ही तुम हो कोई, जो भी हो सर्व हो
हर दिवस ही यहाँ पर विजय पर्व हो.
कुछ सितारे उगे आ गगन में नये
आँख में जो बसे स्वप्न बूढ़े हुए
यूँ लगा पी सुधा फिर युवा होगये
आस के इन्द्रधनुषी पटल ने कहा
अब ये आश्वासनों का भी सन्दर्भ हो
हर दिवस ही यहाँ पर विजय पर्व हो.
यूँ लगा इक नई भोर उगने लगी
रुत सुहानी हुई नव वधू की तरह
पाखियों के नये राग छिड़ने लगे
गन्ध से लग रहा भर रही हर जगह
और अँगनाई कहने लगी सांझ को
उसके प्रांगण में आ गान गन्धर्व ह
हर दिवस ही यहाँ पर विजय पर्व हो.
सूर्य की हर किरण छाँटने लग गई
जो तिमिर का खड़ा मूर्ति बन कर अहम
हर गलत प्रश्न हल हो गया आप ही
बह गया मन से हिम की शिला सा वहम
इस डगर पर चले कोई भी मैं नही
न ही तुम हो कोई, जो भी हो सर्व हो
हर दिवस ही यहाँ पर विजय पर्व हो.
Friday, November 5, 2010
जलते रहें दीपक सदा कायम रहे ये रोशनी
जलते रहें दीपक सदा कायम रहे ये रोशनी
आस के पौधे बढे बढ़ कर उनहत्तर हो गए
एक ही बस लक्ष्य बाकी द्रश्य सारे खो गए
वर्तिका जलती रही तेतीस धागों में बंटी
बंध गए बस एक डोरी में हजारों अजनबी
फिर अमावस में खिली आ कर कहे ये चांदनी
दीप ये जलते रहें कायम रहे ये रोशनी
बाद मंथन के सदा ही रत्न जिसने थे उलीचे
जब जलधि लगाने लगा थक सो गया है आँख मीचे
पर सतत भागीरथी आराधना फलने लगी तो
ईक नई सीपी उगाने लग गई नूतन फसल को
मुस्कुरा गाने लगी वह धूप जो थी अनमनी
दीप ये जलते रहें कायम रहे ये रोशनी
ये घटित कहता न धीमी आग हो विश्वास की
चूनारें धानी रहें मन में हमेशा आस की
ठोकरों का रोष पथ में चार पल ही के लिए
आ गए गंतव्य अपने आप जब निश्चय किये
और संवरी है शिराओं में निरंतर शिंजिनी
दीप ये जलते रहें,कायम रहे ये रोशनी
आस के पौधे बढे बढ़ कर उनहत्तर हो गए
एक ही बस लक्ष्य बाकी द्रश्य सारे खो गए
वर्तिका जलती रही तेतीस धागों में बंटी
बंध गए बस एक डोरी में हजारों अजनबी
फिर अमावस में खिली आ कर कहे ये चांदनी
दीप ये जलते रहें कायम रहे ये रोशनी
बाद मंथन के सदा ही रत्न जिसने थे उलीचे
जब जलधि लगाने लगा थक सो गया है आँख मीचे
पर सतत भागीरथी आराधना फलने लगी तो
ईक नई सीपी उगाने लग गई नूतन फसल को
मुस्कुरा गाने लगी वह धूप जो थी अनमनी
दीप ये जलते रहें कायम रहे ये रोशनी
ये घटित कहता न धीमी आग हो विश्वास की
चूनारें धानी रहें मन में हमेशा आस की
ठोकरों का रोष पथ में चार पल ही के लिए
आ गए गंतव्य अपने आप जब निश्चय किये
और संवरी है शिराओं में निरंतर शिंजिनी
दीप ये जलते रहें,कायम रहे ये रोशनी
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