प्राची और प्रतीची उत्तर दक्षिण सब ने मिल कर भेजे
एक एक कर सुमन पिरोकर अपने भाव भरे संदेशे
रजत जयन्ती के आँचल पर वे कढ़ गए बूटियाँ बन कर
वर्ष हुए उनतीस पंथ में जीवन के जो साथ सहेजे
लगता मगर बात कल की है जब परिचय ने जोड़े धागे
अग्निसाक्षी करके हमने जब अपने अनुबंधन बांधे
आंधी बिजली धूप पौष सावन सब मिल कर बंटे निरंतर
निर्णय रहे एक ही हमने जब जब आराधन आराधे
फिर भी जाने क्यों लगता है हर इक दिन कुछ नया नया सा
उगी भोर का पाखी कह कर कुछ अनचीन्हा आज गया सा
फिर से नूतन हो जाते हैं सात पगों के वचन सात वे
जिनकी धुन में जीवन ने पाया था सच में अर्थ नया सा
3 comments:
राकेश जी, इस बार तो मैं गलत नहीं हो सकती। विवाह की वर्षगाँठ पर बधाई स्वीकार करें।
विवाह की वर्षगाँठ पर बधाई।
राकेश जी, कविता के माध्यम से आपने अपने वैवाहिक वर्षगाँठ को खूब वर्णित किया..वैवाहिक वर्षगाँठ की बहुत बहुत बधाई..प्रणाम
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