कौन अनुभूतियों को दिये जा रहा शब्द, मेरे, अभी जान पाया नहीं काव्य के शिल्प में रंग किसने भरा, ये अभी तक मैं पहचान पाया नहीं भाव को छंद में बाँध किसने दिया, कौन होठों को देकर गया रागिनी मेरे सुर में कोई और गाता रहा, ये सुनिश्चित है मैने तो गाया नहीं
बासूतीजी ! निश्चित मानें मुक्तक लिखता सदा रहूँगा पथ की जो भी बाधायें हों, तनिक न उनसे कभी डरूँगा अतुल,अरुणिमा,उड़नतश्तरी ! आभारी हूँ आभारी हूँ संजय भैया, शायद तुमने ही गाया हो. यही कहूँगा
बेजी प्रश्न बहुत गहरा है, कब तक यों अनजान रहूँगा अगर चीन्ह पाया मैं अपने खुद को तब ही जान सकूँगा अनजाने प्रश्नों के विषधर, इस पल तो घेरे हैं मुझको मिले बीन उत्तर की शायद, तब ही इनसे जूझ सकूंगा
8 comments:
अरे, पता करिये कि आखिर कौन गा गया, भाई साहब!!
मगर जिसने भी गाया है, गाया बेहतरीन है. :)
चित्र भी पसंद आया.
अच्छा लगा मुक्तक. कॄपया जारी रखें
कृपया अपने मुक्तक पढ़ने का अवसर हमें देते रहिये।
घुघूती बासूती
फिर कौन गा गया ? :)
सुंदर मुक्तक, साथ ही चित्र भी।
कब तक यूँ ही अनजान बने रहेंगे??
बासूतीजी ! निश्चित मानें मुक्तक लिखता सदा रहूँगा
पथ की जो भी बाधायें हों, तनिक न उनसे कभी डरूँगा
अतुल,अरुणिमा,उड़नतश्तरी ! आभारी हूँ आभारी हूँ
संजय भैया, शायद तुमने ही गाया हो. यही कहूँगा
बेजी प्रश्न बहुत गहरा है, कब तक यों अनजान रहूँगा
अगर चीन्ह पाया मैं अपने खुद को तब ही जान सकूँगा
अनजाने प्रश्नों के विषधर, इस पल तो घेरे हैं मुझको
मिले बीन उत्तर की शायद, तब ही इनसे जूझ सकूंगा
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