Friday, March 23, 2007

गलती हमारी नहीं- ये तो होना ही था

हमारी कोई गलती नहीं है. यह तो आखिर होना ही था. बकरे की माँ कब तक खैर मनाती. जिधर देखो उधर से जब कविताओं के दनादन प्रहार शुरू हो गये; यहाँ तक कि चिट्ठा चर्चा में भाई समीर जी की कुंडलियां , रवि रतलामीजी के व्यंजल, फ़ुरसतियाजी की पसन्द के गीत और रचनाओं के साथ साथ राके्शजी की कवितामय चर्चा और भाई गिरिराज जो अपने नाम के साथ ही कविता की याद दिलाते हैं; तो असर होना स्वाभाविक ही था.

बात अगर यहीं तक सीमित रहती तो शायद बच कर निकल जाना संभव भी हो सकता था. मगर नारद पर जिस दिन देखो उसी दिन कविता की हवा गुलाब की खुशबू से लेकर चन्दन गंधों में लिपटी हुई मह्कती मिले और बेजी, मान्या, मोहिन्दर कुमार, घुघूती बासूती, रंजू ,प्रत्यक्षा,राकेश खंडेलवाल और भावना कुंअर की पोस्टें आमंत्रित करें- आओ और कविता पढ़ो, तो भाई पढ़नी ही पड़ती है. कितने दिन तक माऊस की क्लिक को बचा पाते इनसे.

कहते हैं खरबूजे को देख कर खरबूजा रंग बदलता है. रहीम दास भी तो कह गये थे

" जैसी संगत बैठिये तैसो ही फल दीन "

अब जो कुछ नीचे लिखा है --वह हम अन्तर्जाल के मठाधिपति को हाजिर नाजिर मान कर, अंजुरि में एच टी एम एल के कोड ( अक्षत नहीं मिले ) लेकर और सामने ई-पंडित जी को आसीन करके कह रहे हैं,- हमारा लिखा नहीं है. चैट पर आदरणीय जीतू भाई साहब ने जैसा हमसे कहा वह हम ज्यों का त्यों आपके सामने रख रहे हैं :-

तो भाइ ऐसा हुआ कि कल जब प्रोग्रामिन्ग करने को कुंजी पटल को खटखटाना शुरू किया तो खुद ब खुद कविता बनती चली गई. साहित्य वाहित्य तो हमने पढ़ा नहीं. हमें तो बस सीधी साधी कम्प्यूटर की भाषा आती है तो वही भाषा कम्प्यूटर से निकल कर आई सामने.

मेरी कविता

ओ सुमंगले, कमल लोचने, ओ विनोदिनी, ओ सुहासिनी
तुमसे दूर, ह्रैदय के मेरे कम्प्यूटर की मौन रागिनी

बार बार पिंगिंग कर करके मैं तुमको आवाज़ लगाता
कभी आल्ट का, कभी एन्टर, कभी होम स्ट्रोक लगाता
हार्ड डिस्क के हर पार्टीशन में है नाम तुम्हारा प्रियतम
विन्डो का मीडिया प्लेयर, गीत तुम्हारे ही बस गाता

सिस्टम होता है रिस्टोरित, सिर्फ़ तुम्ही पर मधुभाषिणी
तुमसे दूर ह्रदय के मेरे कम्प्यूटर की मौन रागिनी


बेसिक में कोबोल में लिखे, फ़ोर्ट्रान में भी सन्देशे
पीडीएफ़ के फ़ार्मेट में बदल बदल कर तुमको भेजे
डेटाबेस समूचा मेरे दिल का तुमसे भरा हुआ है
साथ तुम्हारे बीते सब पल एक्सेल में हैं सजा सहेजे

गूगल का भी सर्च एंजिन तुम पर अटका हुआ मानिनी
तुमसे दूर ह्रदय के मेरे कम्प्यूटर की मौन रागिनी


मेमोरी अपग्रेड करी है जितनी, चित्र बने हैं उतने
हैक किये जाते हैं आकर ख्याल तुम्हारे, मेरे सपने
कितनी भी डीबगिंग करूँ मैं, बार बार यह क्रैश हो रहा
आईबीएम का प्लेटफ़ार्म ये, मैक लगा है मुझको दिखने

कुछ तो अब इलाज बतलाऒ, मेरी फ़ायरफ़ाक्स वाहिनी
तुमसे दूर ह्रदय के मेरे कम्प्यूटर की मौन रागिनी


डायलाग के बाक्स कभी जो मेरा प्रोसेसर दिखलाता
उसमें से भी उभर उभर कर अक्स तुम्हारा आगे आता
याहू कहता, गाऊं याहू जंगली बना तुम्हारी खातिर
अगर न होता नाम तुम्हारा, सर्वर हर फ़ाईल लौटाता

पेंटशाप में दिखता केवल रंग तुम्हारा एक चाँदनी
तुमसे दूर ह्रदय के मेरे कम्प्यूटर की मौन रागिनी.


शार्प-प्रोग्रामिंग-सी, वाली भाषा भी कुछ काम न आई
विस्टा भी मेरी करता है बिना तुम्हारे अब रुसवाई
एसक्यूएल का बेस दगा दे, रुका लिन्क्सिस वाला राऊटर
लेक्समार्क का प्रिन्टर कहता खत्म हो चुकी उसकी स्याही

मेरा मल्टी जोकि मीडिया, तुम उसकी हो चुकी स्वामिनी
तुमसे दूर ह्रदय के मेरे कम्प्यूटर की मौन रागिनी

काम नहीं आते हैं अब कुछ, लेख लिखे जाते ई-स्वामी
सर के ऊपर से उड़ जाता, जो बतलाते रवि रतलामी
पांडे्यजी, नाहरजी, अपने उड़नतश्तरी वाले गुरुवर
फ़ुरसतियाजी औ’ प्रतीक जी को बातें पड़ती समझानी

कोई जतन करो साईबर की गर्द न मुझको पड़े छाननी
तुमसे दूर ह्रदय के मेरे कम्प्यूटर की मौन रागिनी.



इति श्री कम्प्यूटर भाषाये कवितापाठे सर्व अध्याय: !!!!

6 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत खूब...लाजवाब प्रयास बड़ा कामयाब!!बहुत बधाई...इसी तरह के नये नये नित नायाब प्रयोग देखने मिलें तो मजा ही आ जाये!! :)

Pratyaksha said...

मज़ा आ गया !

Jitendra Chaudhary said...

बहुत सही, बेमिसाल।

आपने तो शब्दों को कविता मे पिरो दिया।

हुआ यूं कि कल ही हम चैट पर निहार रहे थे, गीतकार महोदय पधारे। बोले कुछ कम्पूटर टर्म्स के नाम दो। हम सोचे, पता नही इन्हे क्या सूझी, हमने नाम तो सुझा दिए, फिर पूछा कि भई इनका करोगे क्या, बोले कल देखना।

आज देखा तो आश्चर्यचकित रह गया, बहुत ही सधे हुए अन्दाज मे तकनीकी शब्दों का बेमिसाल इस्तेमाल किया गया है। मजा आ गया।

लगे रहो गुरु, कहो तो अब अगला लॉट भेजूं।

अनामदास said...

बहुत सुंदर, आनंद आया. आप तो सीधे हृदय में लॉगइन कर जाते हैं भाई...

अनूप भार्गव said...

बढिया है , आनन्द आ गया ।
बच्चों को 'कम्प्यूटर टरमिनोलोज़ी' सिखानें के लिये काम आयेगी ये कविता ।

Geetkaar said...

समीरजी, अनामदासजी, प्रत्यक्षाजी और अनूपजी.

आपको धन्यवाद. अच्छा लगा यह जानकर कि आपको प्रयोग पसन्द आया.

जीतू भाई-

दूसरा ही क्यों तीसरा भी भेज दो. जो भी रामकहानी आप बतायेंगे, वही लिख देंगे :-)