अब बात साफ़ है. आपको समझाने की जरूरत तो है नहीं, आप खुद ही समझ गये होंगे कि हम एक दिन में कैसे दस दस पोस्ट लिख डालते हैं.
आजकल हमने एक नया बीड़ा उठाया है. लोग हमारे चित्ठे को उद्धॄत नहीं करते ( क्योंकि हम सर्वश्रेष्ठ चिट्ठाकार और साहित्यकार हैं - जो कि लोग समझ नहीं पा रहे ) तो हमने शिकायत भी लिखना शुरू कर दिया है. पहले तो हम विरोध करने वाले थे मगर इस मामले में कोई और ही बाजी मार ले गया तो अब शिकायत के अलावा कोई चारा नहीं है
आज कल हम अपने चिट्ठों के लिये नाम तलाशने की जुगाड़ में हैं. गली मोहल्ला, चौपाल, चौराहा आदि आदि हथियाये जा चुके हैं. हम कुछ अलग हट कर नामों की खोज में हैं. अब इतने अलग भी नहीं कि जमीन ही छोड़ दें. वैसे हमने अपने तीन चिट्ठों के नाम तो निर्धारित कर ही लिये हैं
१. कोई नहीं सुनता
२. कोई नहीं पढ़ता
३. कोई नहीं समझता
हाँ समझने की बात पर ध्यान आया कि एक शिकायत कविताओं के न समझने की भी थी, है और शायद आगे भी रहेगी. जी हां कुछ कविताओं में समझने के लिये ही कुछ नहीं होता
इस दौर के सदके क्या कहिये खोटा भी खरा हो जाता है
जिस ठूंठ को तुम छू देते हो, वो ठूंठ हरा हो जाता है.
भाई साहब तलाश करते रहिये इसमेम कविता और कोशिश करते रहिये समझने की
खैर छोड़ते हैं अब खुमारी उतरने लगी है तो कुछ और बात करते हैं
फिर से शोर मचा है नारेबाजी गली मोहल्लों में
फिर चुनाव आये हैं हलचल होने लगी निठल्लों में
फिर है नीलामी कुर्सी की लोकतंत्र की कीमत पर
दाम लगाते आगे बढ़ कर होड़ लगी है दल्लों में
भगवा हरा और केसरिया सबके खुले अखाड़े हैं
द्वंद युद्ध की है तैयारी राजनीति के मल्लों में
सत्य अहिंसा, ईमानों के शब्दों की भरमार बहुत
तुलते लेकिन इक खंजर पर सभी तुला के पल्लों में
ढूँढ़ रहे हो गाँधी जैसा ? आज यहां पर प्रत्याशी
तेल नहीम मिलता है प्यारे, निचुड़ चुकी जो खल्लों में
5 comments:
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narendra
इस दौर के सदके क्या कहिये खोटा भी खरा हो जाता है
जिस ठूंठ को तुम छू देते हो, वो ठूंठ हरा हो जाता है.
---भाई जी, ये लोगों की सोच है कि हरा हो जाता है. मुझे तो लगता है कि हरा चश्मा लग जाता है. ठूंठ तो ठूंठ ही रहता है. :)
--बहुत सही कटाक्ष है अब समझ जायें तो ठीक...वरना आपने तो धर्म निभाया. :)
हमने टिपया दिया है, कविता समझ मे आयी या नही ये और बात है :)
आप तो बड़ी बढ़िया मौज ले लेते हो गीतकारजी!
"जी हां कुछ कविताओं में समझने के लिये ही कुछ नहीं होता
इस दौर के सदके क्या कहिये खोटा भी खरा हो जाता है
जिस ठूंठ को तुम छू देते हो, वो ठूंठ हरा हो जाता है।"
बहुत अच्छे!!
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