उंगलियों ने मेरी थाम ली तूलिका, चित्र बनने लगे हर दिशा आपके चूम ली जब कलम उंगलियों ने मेरी नाम लिखने लगी एक बस आपके पांखुरी का परस जो करें उंगलियां, आपकी मूर्ति ढलती गई शिल्प में किन्तु गिन न सकीं एक पल, उंगलियां जो जुड़ा है नहीं ध्यान से आपके
"इतनी मधुरता से मधुवन को रच डाला मुक्तक में पढ़ता तो था मैं मगर इस सोंच से परेशान था की अब कहीं यहीं पर इस भावना का अंत तो नहीं आ गया…।" राकेश जी… Ultimate.
5 comments:
वाह!!! बहुत खूब राकेश भाई. मजा आ गया.
अच्छा चित्रण.
सबसे पहले आपसे माफ़ी चाहती हूँ काफ़ी समय से ना कुछ लिख पाई हूँ ना ही पढ़ पाई हूँ...
बहुत अच्छा लिखा है आपने...किन्तु गिन न सकीं एक पल, उंगलियां जो जुड़ा है नहीं ध्यान से आपके ...
आपकी रचना में भाव बहुत गहरे होते है...
बधाई...
सुनीता(शानू)
आपके गीत गहरे होते हैं और स्पंदित करते हैं।
*** राजीव रंजन प्रसाद
"इतनी मधुरता से मधुवन को रच डाला मुक्तक में पढ़ता तो था मैं मगर इस सोंच से परेशान था की अब कहीं यहीं पर इस भावना का अंत तो नहीं
आ गया…।"
राकेश जी… Ultimate.
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