क्या रदीफ़-ए-गज़ल, काफ़िया, क्या बहर, हम न जाने कभी, हम अनाड़ी रहे
सल्तनत शायरी की बहुत है बड़ी और हम एक अदना भिखारी रहे
फिर भी जब बात बारीकियों की चले , ज़िक्र हो जब भी इज़हार-ए-अंदाज़ का
तो यकीं है हमें ओ मेरे हमसुखन ! तेरे लब पे बयानी हमारी रहे
2 comments:
कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना-भाई जी. :) कौन आ गया रडार में...हा हा!! बेहतरीन!!
मैं भी समीर जी का सवाल दोहराना चाहूंगा :)
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