फ़ोन आया हमरे हितैषी का. बहुत गुस्से मेम थे. हलो कहते ही बरस पड़े
" मियां क्या हो गया है तुम्हें . इतना बवाल मचा हुआ है और तुम हो कि नीरो की तरह रोम को जलता हुआ छोड़ कर चैन की वंशी बजा रहे हो. छोड़ो ये हारमोनियम की धुन और कूद पड़ो स्म्ग्राम में. देखो कितने महारथी आज संजाल पर कुरिक्षेत्र बना रहे हैं और बेचारे शांतिदूतों के उपदेशों की धज्जियां उड़ा रहे हैं "
हम सकपकाये. " आप किसकी बात कर रहे हैं ?"
" लगता है आजकल चिट्ठे पढ़ते नहीं हो तभी ऐसे अनजान बन रहे हो " वे बोले
अब क्या बतायें आपको. ले दे के पढ़ने लिखने के लिये जो घड़ी की तिजोरी से एक-दो घंटे चुरा पाते हैं, हम उसमें सिर्फ़ अपनी पसन्द के लेखन को ढूँढ़ कर पढ़ते हैं. इसलिये हमें पता नहीं."
वे चले गये तो रहा न गया. हमने भी सोचा कि दुनिया पानी में बहती है तो हमें भी तो चलती हवाके साथ बहनाचाहिये. तो साहब, हम सिर्फ़ अपनी बात कर रहे हैं और हवा के साथ ऐसे बह रहे हैं :-----
हाथ हमारे भी इस बहती गंगा में धुलवानाजी
ढपली एक हमारी उस पर तुम भी थाप लगाना जी
हम जब मुर्गी आयें चुराने, दड़बा खुला हुआ रखना
और दूसरा कोई आये, चोर चोर चिल्लाना जी
हाय हिन्दू हाय मुस्लिम, इससे आगे बढ़े नहीं
माना है ये खोटा सिक्का, हमको यही चलाना जी
फ़ुल्ले फ़ूटे हुए, हवा के साथ चढ़ चुके हैं नभ पर
ठूड्डी शेष पोटली में है, उसे हमें भुनवाना जी
मस्जिद में फ़ूटे बम चाहे मंदिर का हो कलश गिरा
हमको सब कुछ गुजराती के मत्थे ही मढ़वाना जी
बाकी के सब शब्द आजकल हमको नजर नहीं आते
इसीलिये तो नारद नारद की आवाज़ लगाना जी
कौन यहाँ किस मतलब से है, इससे कोई नहीं मतलब
सिर्फ़ हमारा झंडा फ़हरे, इसकी आस लगाना जी
कुछ भी समझें या न समझें, आदत लेकिन गई नहीं
काम हमारा रहा फ़टे में आकर टांग अड़ाना जी
वैसे तो है निहित स्वार्थ अपना, पर क्यों हम बतलायें
इस्तीफ़े की गीदड़ भभकी, केवल हमें दिखाना जी
11 comments:
कुछ भी समझें या न समझें, आदत लेकिन गई नहीं
काम हमारा रहा फ़टे में आकर टांग अड़ाना जी
--बड़े मौके से अपनी शोधपूर्ण रचना पेश की. बधाई. शांति शांति और बस शांति की कामना है.
बड़े मौके से अपनी शोधपूर्ण रचना पेश की. बधाई. शांति शांति और बस शांति की कामना है.
गर ये शान्ती आ जाये तो,हमरा पता बताना जी
बढ़िया :)
:))good !
पिछ्ले कई दिनों से 'नेट' पर से गायब हूँ इसलिये ठीक से सन्दर्भ तो नहीं मालूम लेकिन कविता/गज़ल अच्छी लगी ।
हाथ हमारे भी इस बहती गंगा में धुलवानाजी
ढपली एक हमारी उस पर तुम भी थाप लगाना जी
हम जब मुर्गी आयें चुराने, दड़बा खुला हुआ रखना
और दूसरा कोई आये, चोर चोर चिल्लाना जी
बहुत खूब ...मजा आ गया ...सच्चाई कहना खूबसूरत अंदाज है आपका...बधाई
इस बहती गंगा में आप भी नहाना जी, हम आपके चिट्ठे पे टिपियाएं, आप हमारे यहाँ टिपियाना जी।
@अरुण,
शांति तो आजकल मायके गई हैं, अशांति जी आई हुई हैं, उनको आपका पता बताएं क्या? :)
सटीक
बढिया ! :-)
इसी की कमी थी ।
पहले तो मैं समझा ये गीतकार की कलम से व्यंग्य कैसे? आगे देखा तो गीत ही है... वाह! गीत में व्यंग्य भी है।
मस्जिद में ऊटे बम चाहे मंदिर का हो कलश गिरा
हमको सब कुछ गुजराती के मत्थे ही मढ़वाना जी
कौन यहाँ किस मतलब से है, इससे कोई नहीं मतलब
सिर्फ़ हमारा झंडा फ़हरे, इसकी आस लगाना जी
बहुत सुंदर
मजेदार ढंद से वास्तविकता का अवलोकन अपने जंचे अंदाज मे< किया है… शोधपरक काव्य की धारा हमेशा से ही सारगर्भित रही है…।
Post a Comment