रात की छत पे आकर ठहरता तो है, चाँदनी से मगर बात करता नहीं
जाने क्या हो गया चाँद को इन दिनों, पांखुरी की गली में उतरता नहीं
ये जो मौसम है, शायद शिथिल कर रहा, भावना,भाव,अनुभूतियाँ, कल्पना
शब्द आकर मचलते नहीं होंठ पर, गीत कोई सुरों में सँवरता नहीं
-----------------------------------------------------------
कल्पना के अधूरे पड़े पॄष्ठ पर, नाम किसका लिखूँ सोचता रह गया
एक बादल अषाढ़ी उमड़ता हुआ, और एकाकियत घोलता बह गया
घाटियों में नदी के किसी मोड़ पर, राह भटकी हुई एक मुट्ठी हवा
साथ दे न सकी एक पल के लिये, पंख, पाखी ह्रदय तोलता रह गया
--------------------------------------------------------------
5 comments:
आपकी कलम तो हमेशा ही सुर में होती है, भाई साहेब, बहुत उम्दा. :)
चांद अगर सुन ले इसे तो छत पर ही रुक जाये
बहुत खूबसूरत पंक्तियां है
waah..dono hi baaten bahut khuubsurat
ओह गज़ब. GREAT. What do I say to something as beautiful as these ...
कल्पना के अनूठे चितेरे ने जब, तान छेड़ी किसी गीत की प्रेम से
आप बहने लगी रागिनी की नदी, ठूँठ तट पर खड़ा देखता रह गया
बहुत सुंदर और सुरीली पँक्तियाँ है, हमेशा की तरह!
- अजय यादव
http://merekavimitra.blogspot.com/
http://ajayyadavace.blogspot.com/
http://intermittent-thoughts.blogspot.com/
Post a Comment