Monday, May 7, 2007

शुभ आशीष तुम्हें देता हूँ

हमारे चिट्ठाकार समूह के वरिष्ठ श्री अनूप शुक्लाजी उर्फ़ फ़ुरसतियाजी की भतीजी स्वाति का शुभ विवाह निष्काम के साथ हो रहा है.

इस अवसर पर ~नव दम्पत्ति को सादर शुभ आशीष

सदा रहे मंगलमय जीवन
शुभ आशीष तुम्हें देता हूँ

बिछें पंथ में सुरभित कलियाँ
रसमय दिन हों रसमय रतियाँ
रसभीनी हो सांझ सुगन्धी
गगन बिखेरे रस मकरन्दी
जिसमें सदा बहारें झूमे
ऐसा इक उपवन देता हूँ

सदा रहे मंगलमय जीवन
शुभ आशीष तुम्हे देता हूँ

जो पी लें सागर से गम को
धरती पर बिखरे हर तम को
बँधे हुए निष्काम राग में
छेड़ें प्रीत भरी सरगम को
जो उच्चार करें गीता सा
ऐसे अधर तुम्हें देता हूँ

सदा रहे मंगलमय जीवन
शुभ आशीष तुम्हें देता हूँ

जो सीपी की आशा जोड़े
लहरों को तट पर ला छोड़े
जो मयूर की आस जगाये
सुधा तॄषाओं में भर जाये
जिसमें घिरें स्वाति घन हर पल
ऐसा गगन तुम्हें देता हूँ

सदा रहे मंगलमय जीवन
शुभ आशीष तुम्हें देता हूँ

सुरभि पंथ में रँगे अल्पना
मूरत हो हर एक कल्पना
मौसम देता रहे बधाई
पुष्पित रहे सदा अँगनाई
फलीभूत हो निमिष निमिष पर
ऐसा कथन तुम्हें देता हूँ

सदा रहे मंगलमय जीवन
शुभ आशीष तुम्हें देता हूँ

2 comments:

Udan Tashtari said...

हमारी भी अनेकों शुभकामनायें स्वाति और निष्काम के सुखद और सफल वैवाहिक जीवन के लिये.

-फुरसतिया जी को भी बधाई!!

Mohinder56 said...

आमीन..

जिसे तुमने चाहा खुश्किस्मत वो बशर है
कुछ माथे की लकीरो, कुछ दुआओं का असर है