Tuesday, August 11, 2009

बासठ वर्षों की आज़ादी

हम स्वतंत्र हैं भूल न जायें, एक बार फिर हुई मुनादी
बासठ दिये जला कर अपना, जन्म दिवस करती आज़ादी

हम स्वतंत्र हैं जहां धरा पर चाहें वहीं बिछौना कर लें
हम स्वतंत्र हैं जहां चाह हो, अंबर के नीचे सो जायें
हम स्वतंत्र हैं, चाहें पानी पीकर अपना पेट पाल ले
और अगर चाहें तो प्यासे रह रह कर ही मंगल गायें

एक बार फिर लगी चमकने कलफ़ लगा कर उजली खादी
बासठ दिये जला कर अपना, जन्म दिवस करती आज़ादी

कान्हा के वंशज, स्वतंत्र हम दही दूध के हैं अधिकारी
हम स्वतंत्र, अनुकूल वात में अपनी गायें भेंसे पालें
हां स्वतंत्र हम जो भी मन में आये उनको वही खिलायें
हम स्वतंत्र हैं, हम चाहें तो खुद ही उमका चारा खालें

हम स्वतंत्र हैं, अर्ध शती में तीन गुणा कर लें आबादी
बासठ दिये जला कर अपना, जन्म दिवस करती आज़ादी

हम स्वतंत्र हैं जितने चाहें, खूब उछालें नभ में नारे
हम स्काटलेंड का पानी पीकर जल संकट सुलझायें
हम स्वतंत्र दोनों हाथों से घर की ओर उलीचें सब कुछ
अन्य सभी को सहन शक्ति का धीरज का हम पाठ पढ़ायें

लिखें कथायें सोच न पाईं जो सपनों में नानी दादी
बासठ दिये जला कर अपना, जन्म दिवस करती आज़ादी

हां हम हैं आज़ाद, बनायें दो सौ दर्ज़न नये संगठन
नित्य बनायें मंदिर, बरगद के नीचे पत्थर रंग रंग कर
हम आज़ाद बहायें नदियां दही दूध की प्रतिमाओं पर
हम आज़ाद करें बचपन को कैद, हाथ में फटका देकर

हम स्वतंत्र हैं टेढ़ी कर दें, बातें हों जो सीधी सादी
बासठ दिये जला कर अपना जन्मदिवस करती आज़ादी

3 comments:

निर्मला कपिला said...

हम स्वतंत्र हैं जितने चाहें, खूब उछालें नभ में नारे
हम स्काटलेंड का पानी पीकर जल संकट सुलझायें
हम स्वतंत्र दोनों हाथों से घर की ओर उलीचें सब कुछ
अन्य सभी को सहन शक्ति का धीरज का हम पाठ पढ़ाये
बहुत बडिया लिखा है बासठ् वर्शों मे ही हमारे चरित्र का क्या हाल हो गया है हमे देश प्रेम का अर्थ भी शायद भूल गया है ब्हुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति है आभार्

Shardula said...

रचना निस्संदेह अच्छी है.
जब भी कोई ऎसी रचना पढ़ती हूँ, सबसे पहले खुद की ओर देखती हूँ,मेरा क्या योगदान रहा देश के इस हाल में. कुछ उत्तर हाथ नहीं आता है गुरुजी! सादर . . .

Unknown said...

BAHUT KHOOB BADHAAI !