वो जिसकी गौनियों से तुम डले गुड़ के चुराते थे
वो जिसके तास के बूरे में तुम फ़ंकी लगाते थे
जो तुमसे बांटता था गोलियां चूरन की रोजाना
वो जिसकी सायकिल हर शाम को तुम मांग लाते थे
कभी तो लौट कर आओगे तुम ये बात करता है
तुम्हें वो गांव का पप्पू पंसारी याद करता है
जहां तुमने बहस की थी खड़े होकर चुनावों की
जहां तुम बात करते थे ज़माने के गुनाहों की
हैं धब्बे पीक के दूकान के बाजू अभी मौजूद
जहां छोड़ी निशानी पान के तुमने लुआबों की
अभी चूना लगाने की तुम्हारी बात करता है
तुम्हें ले पान , वो कुन्दन कबाड़ी याद करता है
मियां जुम्मन रहे लाते थे जिस पर लाद कर कुल्लड़
कि जिसके साथ मचता था बरस का फ़ागुनी हुल्लड़
सवारी जिसकी करते थे बने होली पे तुम टेपा
घुमाता था तुम्हें जो रोज ही चौपाल से नुक्कड़
गधा वो फिर तुम्हारे साथ की फ़रियाद करता है
तुम्हें वह गांव का मोहन मदारी याद करता है
कभी जिसके कटोरे में न डाला एक भी पैसा
जो कहता था नहीं देखा कभी कोई भी तुम जैसा
वो जिसके हाथ की लाठी कभी तुम लेके भागे थे
न जिससे पूछ पाये थे हुआ है हाल क्यों ऐसा
तुम्हें मनहूसियत कह दर्द का इज़हार करता है
तुम्हें वो गांव का भीखू भिखारी याद करता है
सुनो ! संभव अगर हो एक दिन वापिस चले जाओ
नहीं बदले जरा सा भी, उन्हें ये बात बतलाऒ
कहो अब गुड़ नहीं चीनी के पैकेट तुम उठाते हो
गधे जैसी खटारा ही यहां पर तुम चलाते हो
यहां पानी का कूलर वक्त को बरबाद करता है
तुम्हारा दिल अभी भी गांव अपना याद करता है
5 comments:
बहुत सुन्दर रचना है\गाँव की यादे सभी को अपने अपने ढंग से याद आती रहती हैं।बहुत बढिया रचना है।बधाई।
अरे महाराज!! ऐसे याद करेगा गांव तब तो कुट कर ही लौटना संभव हो पायेगा.
गधा वो फिर तुम्हारे साथ की फ़रियाद करता है
तुम्हें वह गांव का मोहन मदारी याद करता है
-गजब भाई जी..ऐसे में तो बिना याद किए ही ठीक है. :)
ऐसा कौन होगा जिसके ह्रदय में इस रचना को पढ़ मिटटी से कटने की हूक न उठेगी....बहुत बहुत सुन्दर ...लाजवाब...
:)
वो जिसके हाथ की तुम दाल बाटी दबा खाते थे
वो जिसके फूल पूजा के प्रिया को दे के आते थे
तुम्हारे एक ख़त को सौ-सौ बारी पढ़ा करती थी
वो जिससे ले उधारी तुम सिनेमा देख आते थे
तुम्हारे चित्र सीने से लगा वो बात करती है
तुम्हें वो गाँव की ग्वालिन गुलाबो याद करती है !
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