केतकी वन, फूल उपवन, प्रीत मन महके
सांझ आई बो गई थी चाँदनी के बीज
रात भर तपते सितारे जब गये थे सीज
ओस के कण, पाटलों पर आ गये बह के
कह गई आकर हवा जब एक मीठी बात
भर गया फिर रंग से खिल कर कली का गात
प्यार के पल सुर्ख होकर गाल पर दहके
कातती है गंध को पुरबाई ले तकली
बादलों के वक्ष पर शम्पाओं की हँसली
कह रही है भेद सारे मौन ही रह के
4 comments:
राकेश जी,बहुत ही सुन्दर रचना है।बधाई।
बहुत सुन्दर कविता है।
घुघूती बासूती
"रात भर तपते सितारे जब गये थे सीज
ओस के कण, पाटलों पर आ गये बह के"
बहुत ही मर्मस्पर्शी !
आभार आपका इन के लिए !
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