सुनो जरा सा समय मिले तो इतना मुझे बता जाना तुम
क्या कह कर मैं तुम्हें पुकारूँ , आखिर कौन कहो तुम मेरे
तुम हो सखा ? निमिष के परिचित ? या राहों के सहचर कोई
क्यो आकर के स्वप्न तुम्हारे डाल रहे नयनों में डेरे
मेरे दिवस निशा के गतिक्रम, उलझ गये हैं क्यों तुम ही में
और साफ़ क्यों नजर नहीं आता है मुझको चित्र तुम्हारा
मेरी नजरों की भटकन, लौटी है चेहरों से टकराकर
दृष्टि किरण को सोख रखे जो, अब तक मिला नही वह चेहरा
मेरे मन के आईने में टँका हुआ जो एक फ़्रेम है
उसमें चित्र नहीं दिखता है, दिखता केवल रंग सुनहरा
यद्यपि ज्ञात मुझे है केवल चित्र तुम्हारा वहाँ लगेगा
लेकिन जब तक कहो नहीं तुम, धुंधला ही रहता बेचारा
ऊहापोह और असमंजस घेरे हुए मुझे रहते हैं
संशय के उगने लगते हैं जाने क्यों पग पग पर साये
स्वीकॄति पाने की आतुरता में द्वारे तक जाकर लौटे
बार बार पग बिना दस्तकों के लगता है, हैं बौराये
मैं इक दिया प्रतीक्षा वाला दीपित करके खड़ा हुआ हूँ
शायद तुम संबोधन सुन लो, वह जो मैने नहीं उचारा
हां ये भी है विदित न जाने कितने प्रश्न उठेंगे इस पर
क्योंकि न तुमसे परिचित हूँ मैं, और न ही तुम मुझसे परिचित
और बात जो उठी ह्रदय सेर मैने वह ज्यों की त्यों लिख दी
जोड़ा नहीम विशेषण कोई , और न क्रम से ही की शिल्पित
हां यह संभव प्रतिउत्तर में मेरे प्रश्नों को सुलझाये
संध्या के ढलते ही आता जो रजनी का पहला तारा
4 comments:
"तुम हो सखा ? निमिष के परिचित ? या राहों के सहचर कोई"
"मेरे दिवस निशा के गतिक्रम, उलझ गये हैं क्यों तुम ही में"
"स्वीकॄति पाने की आतुरता...जो मैने नहीं उचारा"
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हमेशा की तरह सुन्दर रचना ! मेरा "Random Praise Generator" Project अभी तक सफल नहीं हुआ है :). Auto Comment नहीं आता है, खुद ही लिखना पड़ रहा है :)
"आखिर कौन कहो तुम मेरे" इस प्रश्न का उत्तर आपको पता चले तो हमें बताना ना भूलियेगा :)
मेरे दिवस निशा के गतिक्रम, उलझ गये हैं क्यों तुम ही में !
सुनो जरा सा समय मिले तो इतना मुझे बता जाना तुम
क्या कह कर मैं तुम्हें पुकारूँ , आखिर कौन कहो तुम मेरे
तुम हो सखा ? निमिष के परिचित ? या राहों के सहचर कोई
क्यो आकर के स्वप्न तुम्हारे डाल रहे नयनों में डेरे
:)
स्वीकॄति पाने की आतुरता में द्वारे तक जाकर लौटे
बार बार पग बिना दस्तकों के लगता है, हैं बौराये
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