Wednesday, April 2, 2008

अमरीका में रहता हूँ जी

पिछले सप्ताह एक समूह पर एक रचना पढी. उस रचना के उत्तर में एक तथाकथित स्वनामधन्य "अमेरिका के महान हिन्दी कवि " की प्रतिक्रिया उलजलूल शब्दों में पढी. हम क्योंकि समझदारी के मामले में थोड़ा तंग हैं इसलिए उनकी रचना समझ नहीं पाए. लिहाजा उन्हें फोन किया, इमेल भेजी और चिट्ठी भी भेजी . जवाब जो अपेक्षित था वह तों मिला नहीं. हाँ उन्होंने जो कुछ इधर उधर की हांक कर समझाया, वह कुछ ऐसे था

अमरीका में जब भी कोई मिलता पूछे क्या करते हो ?
कंप्यूटर के प्रोग्रामर हो या रोगी देखा करते हो ?
या कंसल्टिंग के बिजनेस में अपनी टाँग अडा रक्खी है
या फिर मोटल होटल का व्यवसाय कोई किया करते हो ?
मैं इन सबके उत्तर में बस मुस्ककर इतना कहता हूँ
अमरीका में रहता हूँ जी, मैं कवि हूँ कविता करता हूँ

वैसे मुझको ज्ञान नहीं है ज्यादा कोई भी भाषा का
फिर भी लिखता दीप जलाकर ताली बजने की आशा का
कभी कभी गलती से कोई तुकबंदी भी हो जाती है
जो लिखता हूँ वो मेरी नजरों में कविता हो जाती है
शब्दों के संग उठापटक मैं रोजाना करता रहता हूँ
अमरीका में रहता हूँ जी मैं कवि हूँ कविता करता हूँ

शब्द्कोश की गहराई से भारीभरकम शब्द तलाशे
जिनका समझ न पायें कुछ भी आशय श्रोता अच्छे खासे
मैं जिजीविषा की प्रज्ञा के संकुल के उपमान बना कर
उटपटांग बात कहता हूँ अपने पंचम सुर में गाकर
काव्य धारा की घास मनोहर मैं स्वच्छंद चरा करता हूँ
अमरीका में रहता हूँ जी मैं कवि हूँ कविता करता हूँ

कोई चाहे या न चाहे मैं सम्मेलन में घुस जाता
कथा पीर की मैं दहाड़ कर भरे चुनौती स्वर में गता
कवि सम्मेलन के संयोजक मुझसे कन्नी कटा करते
मेरी बुद्धिमता के आगे अकलमंद सब पानी भरते
मैं हूँ मिट्ठू लाल ढिंढोरा यही सदा पिता करता हूँ
अमरीका में रहता हूँ जी मैं कवि हूँ कविता करता हूँ

6 comments:

अमिताभ मीत said...

बहुत सही लिखा है साहब.

azdak said...

गुडम गुड. जियिये, महाराज और मस्‍तमस्‍त रहिये!

अनूप शुक्ल said...

बढ़िया करते हैं। अमेरिका में वैसे भी तमाम लफ़ड़े होते हैं। एक और सही। :)

Udan Tashtari said...

बड़ा ही यूनीक काम करते है..कविता?? कैसे कर लेते हैं इतनी मेहनत?? :)

हा हा!! ,मजेदार!!

संजय बेंगाणी said...

इसे ही पतनशीलता कहते है.

सत्य स्वीकृति : कभी कभी गलती से कोई तुकबंदी भी हो जाती है. :D

पारुल "पुखराज" said...

बहुत खूब राकेश जी। सदा की तरह