Tuesday, April 1, 2008

ये कम्प्यूटर समझदार है

बात् दर असल ये हुई की श्री जी ने शिकायत की की हम उनकी रचनाओं पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहे. हमने उन्हें बताया की हम ने तो उनकी कोई रचना पढी नहीं जबकि उनका दावा था की वे हमें लगातार इमेल से भेज रहे थे.काफी जद्दोजहद के बाद हमने पाया की उनकी भेजी हुई सभी रचनाएँ हमारे इमेल के बल्क फोल्डर में सुरक्षित हैं और हमें उन पर निगाह डालने का मौका हमारे कंप्यूटर ने न देकर हमें सरदर्द से बचा रखा था तों निश्चित है की हम कंप्यूटर की शान में कसीदे पढ़ें

यह जो मेरा कम्प्यूटर है, मुझसे ज्यादा समझदार है

बे सिरपैरी, बिना अर्थ की मिलती ऊटपटांग कथायें
तो यह उनको लेजाकर के जंकबाक्स में रख देता है
और कसौटी पर जो इसकी उतरें खरी बिना संशय के
सिर्फ़ उन्हीं को यह आगत की श्रेणी में घुसने देता है

नया उपकरण इसने ओढ़ा, सुनी वक्त की जो पुकार है

जो ये समझ नहीं पाता है, कभी उन्हें दे देता नम्बर
कभी शब्द का असली जो है विकॄत रूप दिखाने लगता
मैने यों तो कई सयाने ओझा अपने पास रखे हैं
उनके मंत्र अगर सुनता है कभी कभी खुद गाने लगता

तेली को यह दिखला देता, कहाँ तेल की बही धार है

संचालक भी सारे कितने जतन किये पर आखिर हारे
कब इसकी क्या मर्जी होगी, केवल यही बता पायेगा
लेकिन इतना हुआ सुनिश्चित, यह मर्मज्ञ श्रेष्ठता का है
छाँट छाँट कर अभिव्यक्ति को लेकर के सन्मुख आयेगा

डाल रखा है अपने काँधों पर इसने खुद बड़ा भार है
ये कम्प्यूटर समझदार है

3 comments:

अनूप शुक्ल said...

संगत का असर होना चाहिये। कम्प्यूटर पर और गीतकार पर भी।

Harihar said...

वाह राकेश जी, सुन्दर कविता

Udan Tashtari said...

हाय!!! अब समझा मेरी रचनाओं पर आपकी टिप्पणियाँ क्यूँ नहीं आ रहीं हैं. आपका कहाँ कसूर है, यह कम्प्यूटर आपका बहुत समझदार इसलिये बदमाश हो गया है.

जल्द मुलाकात पर आपको अपनी पसंद का लेपटॉप नॉन-बदमाश टाईप दिया जायेगा.

रचना तो खैर मस्त है ही!!!