Friday, January 26, 2007

ढलती हुई उमर के

अभी अभी जब नारद महाराज खबर लाये कि चढ़ती हुई उमर की निशानियां लेकर गीत कलश छलक रहा है तो हम जानकारी प्राप्त करने के लिये बढ़्ना ही चाहते थे कि सामने से लाल साहब मुंह में चुरूट दबाये आते दिखाई दिये. आते ही दनदनाते हुए गोला दागा,

" भाई गीतकारजी ! ये क्या " ?

क्या ? हम असमंजस में थे

" अरे, ये देखिये, पनघट की गागर से ज्यादा छलक रहा है गीतकलश और
वे सब बातें बता रहा है जो कि हमारे लिये इतिहास हो चुकी हैं. भाई साहब,अब यह आपका जिम्मा है कि हमें भूत से वर्तमान में लेकर आयें. "

हम सोच में पड़े कि क्या जबाब दें, कि उन्होंने अपनी बात के समर्थन में श्रीमान फ़ुरसतियाजी का प्रमाणित पत्र भी थमा दिया जिसमें उन्होने भी इसी बात का अनुमोदन किया था..

चूंकि दिग्गजों की बात टालने की सामर्थ्य हमें ढूँढ़ने पर भी प्राप्त नहीं हुई तो हमने शब्द्कोश में डुबकी लगा कर जो हासिल किया, वह प्रस्तुत है:-


बच्चे हंसने लगें ठठाकर,बात अनसुनी जब कर कर के
मॄत्तिमूर्तिके ! निश्चित हैं ये लक्षण ढलती हुई उमर के

जब दर्पण में दिखती है बस आंखों के नीचे की झांई
बिचकाती है अपने मुंह को जब उस पार खड़ी परछाई
प्रश्न निगाहों के रह रह कर चश्मे के शीशों को पोंछें
शायद नजर कहीं पड़ जाये जो खो गई कहीं लोनाई

प्रेमगीत की जगह याद जब रहते अफ़साने दफ़्तर के
ओ भ्रमग्रसिते ! ये सब लक्षण हैं,सच ढलती हुई उमर के

तन की बिल्डिंग की छत पर जब उग आयें पौधे कपास के
बिस्तर पर जब गुजरें रातें, करवट लेकर खांस खांस के
जब हिमेश रेशमिया की धुन, लगे ठठेरे की दुकान सी
याद रहें केवल विज्ञापन जब झंडू की च्यवनप्राश के

बाहर से ज्यादा अच्छे जब दॄश्य लगें घर के अंदर के
सपनों के यायावर, ये हैं लक्षण ढलती हुई उमर के

विस्तारित होने लगती हैं जब सीमायें कटि-प्रदेश की
फ़ैशन की अग्रणी लगें जब, भूषा स्वामी अग्निवेश की
भूसी ईसबगोल बने जब संध्या के भोजन का हिस्सा
निर्णय की घडियां सारी, जब बन जाती हैं पशोपेश की

वक्त गुजारा जाता सारा, जब केवल चिट्ठा लिख कर के
अब तो मानो बात, कि लक्षण हैं ये ढलती हुई उमर के.

7 comments:

Udan Tashtari said...

भाई जी, हँसा हँसा कर बुरा हाल कर दिये. भईये, बुढ़ापे में ज्यादा हँसने से कुछ लफड़ा हुआ तो आप जिम्मेदार होंगे. इतना हँसाने के पहले हमारी ढ़लती उम्र का तो ख्याल रखा करें... :) :)

Divine India said...

अरे भाई आपने तो गीत कलश के नीचे से सुराख कर दिया…बड़ा हंसाया…मजा आ गया :)

Sagar Chand Nahar said...

सच बताईये मैने तो आपसे ये सब बताया नहीं फ़िर मेरी सारी बातें आपने जान कैसे ली, और ठीक है जान ली तो कोई बात नहीं पर सार्वजनिक क्यों कि?
मैं आप को कभी माफ नहीं करूंगा।
:) :) :)


www.nahar.wordpress.com
(मेरे भाई यह वर्ड प्रेस वालों को भी कमेन्ट करने की छूट दो, सिर्फ़ गूगल वालों को ही क्यों? )

Sagar Chand Nahar said...

क्षमा करें

सार्वजनिक क्यों कि?
की जगह
सार्वजनिक क्यों की?
पढ़ें

Geetkaar said...

नाहर भाई
वर्डप्रेस की समस्या को तो आप, ई-स्वामीजी और ई-पंडितजी ही सुलझा सकते हैं. मेरा तकनीकी ज्ञान नगण्य है.

रही बात आपके हाल की तो

ताड़ने वाले कयामत की नजर रखते हैं

Dr.Bhawna Kunwar said...

बहुत अच्छा वर्णन किया है ढलती उम्र का काफी हँसने को मिला चलिये हमारे लिये तो स्वास्थ्यवर्धक ही रहा। :):):)

परमजीत सिहँ बाली said...

गीतकार जी,बहुत अच्छा लिखतें हैं आप।बधाई ।