आँखों में रहता था मेरी, पलकों की परछाईं सा
आँखों से वो चला गया, चौराहे की रूसवाई सा
यादों के चिथड़ों में भी है कुछ अवशेष नहीं बाकी
जिसका नाम बसा था लब पर तुलसी की चौपाई सा
सोच रहा हूँ अपने दिल के तहखाने को खोलूँ मैं
शायद कोई नाम मिल सके सावन की पुरबाई सा
जाने कौन इशारा करता, जाने कौन बुलाता है
घोल रहा है कौन हवा में अपना सुर शहनाई सा
अहसासों की उमड़ी आँधी में कोई ऐसा भी है
जिसका ख्याल जहन में रहता, आधी लिखी रूबाई सा
7 comments:
जाने कौन इशारा करता, जाने कौन बुलाता है
घोल रहा है कौन हवा में अपना सुर शहनाई सा
--मौसम का तकाजा है, भाई जी. :)
-बेहतरीन प्रस्तुति...बधाई.
बहुत खूब !!! बधाई
रीतेश गुप्ता
जाने को तुझको कह कर....
चौकट में बैठी रहती हूं...
आते जाते हर आहट में..
तुझको ढूँढा करती हूँ....
बहुत सुंदर !!
Ab apki kavitaon par tippadi bhi kar sakna apne kad se bahut aage ki baat lagti hai.
Par shayad main hi galat arth laga paya, lekin ek prashna hai, pahli do panktiyan aur antim do panktiyan aisi nahi lag rhain kahin ki ek kaan me kaha duje se bahar.
Matlab bas itna ki kavita ke bahakte bhavon me yadi arth aur arthat ki dandi maar kar baithen to lagta hai ki bhakat gaya main khud. JO Chaurahe ki rusvayi sa ankhon se chala gaya, abhi bhi adhi likhi rubayi ban data hua hai. Bhav samya mil nahi paya.
Kavita ki badahyi ke liye to pahle hi kaha ki mera kad nahi ki kuch bhi kah sakun.
उपस्थितजी
आंखों से ओझल होने के बाद भी अनुभूतियों के दायरे में जो भाव रहता है, जो अवचेतन से चेतन की डोर संभालता है, वह भाव कभी विलुप्त नहीं होता. दूसरी बात कि गज़ल के शेर यद्यपि रदीफ़ और काफ़िये से बँधे होते हैं, अपने आप में स्वतंत्र होते हैं. कविता और गज़ल में मूल रूप से फ़र्क होता है. एक के परिप्रेक्ष्य में अगर दूसरे को देखा जाये तो निश्चित ही त्रुटियां नजर आयेंगी. vaise aapake sookShm avalokan ke liye aapako saadhuvaad
समीरजी, रीतेशजी और बेजीजी,
धन्यवाद. बेजीजी- अच्छा लगा आपकी कवितात्मक प्रतिक्रिया पढ़कर
अहसासों की उमड़ी आँधी में कोई ऐसा भी है
जिसका ख्याल जहन में रहता, आधी लिखी रूबाई सा !!
बहुत ख़ूब ...
एक दर्द है जो सीने मैं कही दबा है
आई जब भी याद उसकी तो वो मेरे लफ़्ज़ो में ढल गया !!
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