जलते रहें दीपक सदा कायम रहे ये रोशनी
आस के पौधे बढे बढ़ कर उनहत्तर हो गए
एक ही बस लक्ष्य बाकी द्रश्य सारे खो गए
वर्तिका जलती रही तेतीस धागों में बंटी
बंध गए बस एक डोरी में हजारों अजनबी
फिर अमावस में खिली आ कर कहे ये चांदनी
दीप ये जलते रहें कायम रहे ये रोशनी
बाद मंथन के सदा ही रत्न जिसने थे उलीचे
जब जलधि लगाने लगा थक सो गया है आँख मीचे
पर सतत भागीरथी आराधना फलने लगी तो
ईक नई सीपी उगाने लग गई नूतन फसल को
मुस्कुरा गाने लगी वह धूप जो थी अनमनी
दीप ये जलते रहें कायम रहे ये रोशनी
ये घटित कहता न धीमी आग हो विश्वास की
चूनारें धानी रहें मन में हमेशा आस की
ठोकरों का रोष पथ में चार पल ही के लिए
आ गए गंतव्य अपने आप जब निश्चय किये
और संवरी है शिराओं में निरंतर शिंजिनी
दीप ये जलते रहें,कायम रहे ये रोशनी
5 comments:
वाह!! तरही कलाम पर क्या गीत निकाला है.. जबरदस्त!!
सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल 'समीर
शुभ दीपावली.... दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं.....
आपको भी सपरिवार दिपोत्सव की शुभकामनाएँ
बहुत सुंदर...अभी अभी मुशायरे में पढ़ा इस रचना को कितनी खूबसूरती से आपने ग़ज़ल के मिसिरे को गीत में ढाला है यह कमाल सब के बस की बात नही...सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई साथ ही साथ दीवाली की भी हार्दिक शुभकामनाएँ..प्रणाम
राकेश जी जन्मदिन और दीपावली की हार्दिक बधाई। आपने स्पष्ट तो जन्मदिन के बारे में नहीं लिखा है लेकिन आस के पौधे बढें, बढ़कर उनहत्तर हो गये। इससे आभासित हो रहा है। पुन: बधाई।
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