Friday, November 5, 2010

जलते रहें दीपक सदा कायम रहे ये रोशनी

जलते रहें दीपक सदा कायम रहे ये रोशनी




आस के पौधे बढे बढ़ कर उनहत्तर हो गए

एक ही बस लक्ष्य बाकी द्रश्य सारे खो गए

वर्तिका जलती रही तेतीस धागों में बंटी

बंध गए बस एक डोरी में हजारों अजनबी

फिर अमावस में खिली आ कर कहे ये चांदनी

दीप ये जलते रहें कायम रहे ये रोशनी



बाद मंथन के सदा ही रत्न जिसने थे उलीचे

जब जलधि लगाने लगा थक सो गया है आँख मीचे

पर सतत भागीरथी आराधना फलने लगी तो

ईक नई सीपी उगाने लग गई नूतन फसल को

मुस्कुरा गाने लगी वह धूप जो थी अनमनी

दीप ये जलते रहें कायम रहे ये रोशनी



ये घटित कहता न धीमी आग हो विश्वास की

चूनारें धानी रहें मन में हमेशा आस की

ठोकरों का रोष पथ में चार पल ही के लिए

आ गए गंतव्य अपने आप जब निश्चय किये

और संवरी है शिराओं में निरंतर शिंजिनी

दीप ये जलते रहें,कायम रहे ये रोशनी

5 comments:

Udan Tashtari said...

वाह!! तरही कलाम पर क्या गीत निकाला है.. जबरदस्त!!




सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

-समीर लाल 'समीर

समय चक्र said...

शुभ दीपावली.... दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं.....

आशीष मिश्रा said...

आपको भी सपरिवार दिपोत्सव की शुभकामनाएँ

विनोद कुमार पांडेय said...

बहुत सुंदर...अभी अभी मुशायरे में पढ़ा इस रचना को कितनी खूबसूरती से आपने ग़ज़ल के मिसिरे को गीत में ढाला है यह कमाल सब के बस की बात नही...सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई साथ ही साथ दीवाली की भी हार्दिक शुभकामनाएँ..प्रणाम

अजित गुप्ता का कोना said...

राकेश जी जन्‍मदिन और दीपावली की हार्दिक बधाई। आपने स्‍पष्‍ट तो जन्‍मदिन के बारे में नहीं लिखा है लेकिन आस के पौधे बढें, बढ़कर उनहत्तर हो गये। इससे आभासित हो रहा है। पुन: बधाई।