Monday, August 16, 2010

मन में दृढ़ विश्वास लिये

पथ में उगती हौं बाधायें

उमड़ उमड़ आयें झंझायें

अवरोधों के फ़न फ़ैलायें

मंज़िल के अनुरागी बढ़ते रहते अनबुझ प्यास लिये

यायावर गति में रहते हैं, मन में दृढ़ विश्वास लिये



अगन उगलती हो दोपहरी

घिरी घटायें हौं या गहरी

लगें घड़ी की सुइयाँ ठहरी

संकल्पों को बाँध,तिमिर का रह रह कर उपहास किये

यायावर चलते रहते हैं,मन में दृढ़ विश्वास लिये



घिरता आये घ्हना कुहासा

पल पल ठोकर खाये आशा

साथ छोड़ती हो अभिलाषा

नये दिवस की अगवानी में दीप्त हुआ आकाश लिये

यायावर चलते रहते हैं,मन में दृढ़ विश्वास लिये



नज़्म कतओं की सभी विधायें

तुकविहीन रहती कवितायें

अपनी ढपली खूब बजायें

कालजयी बस गीत रहा है,अलंकार अनुप्रास लिये

और साधना करें उपासक,मन में दृढ़ विश्वास लिये.

4 comments:

संजय भास्‍कर said...

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......

विनोद कुमार पांडेय said...

बहुत ही ज़्यादा खूबसूरत आज की दोनों रचनाएँ दिल छू गई...हर एक पंक्ति बेहतरीन ..राकेश जी प्रणाम स्वीकारें

निर्मला कपिला said...

बहुत बहुत धन्यवाद देर से आने के लिये क्षमा। स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनायें।