प्रतिभाओं की कमी नहीं है--१
चाहत यह वर्चस्व हमारा सदा रहे,हर घड़ी पली है
कुछ भी हो बस एक सदा ही ठकुरसुहाती लगी भली है
बिम्ब न अपना देख सकें पर चाहत है संजय कहलायें
तानसेन सब माने चाहे गर्दभ सुर में गाना गायें
दो लाइन में शब्द जोड़कर कह देते हैं लिखी गज़ल है
और लिख दिया है जो वह ही शाश्वत है सम्पूर्ण अटल है
इधर उधर के शब्द जमाकर उसको कविता कह देते हैं
नई विधा के नये रचयिता हैं, इस भ्रम में रह लेते हैं
प्रश्न उठाता है कोई तो मौन साध कर रह जाते हैं
पढ़ा नहीं साहित्य, भूमि से नाता है बस बतलाते हैं
ऊलजुलूल टिप्पणी देकर आशा बदले में पा जायें
होता हो गुणगान निरख कर पल पल फूलें और अघायें
जिनके बूते पर चलती है आत्मश्लाघा की परिपाटी
बाँटी कभी रेवड़ी जिसने रह रह कर निज को ही बाँटी
उनकी खरपतवारी फ़सलें निमिष मात्र भी थमी नहीं है
हर युग में कुछ ऐसी अद्भुत प्रतिभाओं की कमी नहीं है.
प्रतिभाओं की कमी नहीं है----२
कब आवश्यक यज्ञ होम ही केवल ईश धरा पर लायें
यह आवश्यक नहीं वेदपाठी ही केवल मंत्र सुनायें
राजकुंवर के ही हिस्से में आ पाये अधुनातन शिक्षा
कब आवश्यक बिना पुरोहित के शुभ कार्य नहीं हो पायें
जो अपना संकल्प उठा कर इच्छित प्राप्त किया करते हैं
एक कुदाली से पर्बत का सीना चीर दिया करते हैं
आंजुरि में भर सिन्धु पान की क्षमता जिनके पास रही है
अपनी निष्ठा से जो पाषाणों को प्राण दिया करते हैं
आँखें खुलने से पहले ही सीखा चक्रव्यूह का भेदन
एक गिलहरी के श्रम पर भी उमड़ा है जिनका संवेदन
कोई भी युग हो असफ़लता एकलव्य को नहीं मिली है
अंगुल अष्ट प्रमाण,सुना तो करते सहज लक्ष्य का बेधन
ध्रुव बन जिनकी कीर्ति निशा के नभ में हरपल बनी रही है
जिनके कारण अंतरिक्ष में धरा बिन्दु पर टिकी रही है
और आज की बात करें तो भी बस केवल हमी नहीं है
कोई युग हो, कोई चुनौती, प्रतिभाओं की कमी नहीं है
2 comments:
आज महाराज के अलग ही तेवर दिख रहे हैं.
ठकुरसुहाती - बहुत अरसे बाद इस का प्रयोग देखा और अद्भुत रहा!
राकेश जी,थोड़ी अलग रचना पर अद्भुत!!
भाव व्यक्त करने का एक बेहतरीन अंदाज...सब माँ सरस्वती की कृपा है.. प्रणाम स्वीकारें..
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