Monday, July 5, 2010

आँख का पानी--दो चित्र

भाव बन कर शिंजिनी गूँजें शिराओं में
पीर बासन्ती घुले महकी हवाओं में
करवटें मन की पिघलती हों अचानक ही
गूँज हर,रह जाये जब खोकर दिशाओं में
नव रसों में जब मिलें सहसा नये मानी
उस घड़ी बरसात करता आँख का पानी
रागिनी जब कोई आकर राग को छूले
रंग बिखराया हुआ जब फ़ाग को भूले
पाँव लौटें गांव को कर कालियामर्दन
गंध ओढ़े मोतिया, बेला महक फूले
चित्र बन जाये कोई परछाईं अनजानी
उस घड़ी आता उमड़ कर आँख का पानी
हाथ की रेखायें जन अनुकूल हो जायें
नीरजी पांखुर डगर के शूल हो जायें
जब गगनचुम्बी,समय के सिन्धु की लहरें
एक मैदानी नदी का कूल हो जायें
दोपहर में गुनगुनाये रात के रानी
तोड़ देता बांध उस पल आँख का पानी


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बहा आँख का पानी

टुती हुई सपन की डोरी
विरहा व्याकुल एक चकोरी
उस पर ये बरसात निगोड़ी
लिख देती है भिगो पीर में फिर से एक कहानी
बहे आँख का पानी

हिना हथेली आन रचाये
अँगनाई अल्पना सजाये
शहनाई मंगल सुर गाये
कदली खंभॊं पर तारों ने जब भी चूनर तानी
बहे आँख से पानी

साध संवर कर पूरी होले
विधना बंद पिटारी खोले
बिन रुत के पड़ जायें हिंडोले
उतर गोख में आकर गाये इक चिड़िया अनजानी
बहे आँख का पानी

6 comments:

Udan Tashtari said...

शिंजिनी गूँजें शिराओं में


-अद्भुत बिम्ब!! आपकी लेखनी को सलाम! जय हो!

Udan Tashtari said...

शिंजिनी गूँजें शिराओं में


-अद्भुत बिम्ब!! आपकी लेखनी को सलाम! जय हो!

Udan Tashtari said...

शिंजिनी गूँजें शिराओं में


-अद्भुत बिम्ब!! आपकी लेखनी को सलाम! जय हो!

निर्मला कपिला said...

कृप्या ब्लाग की बैकग्राऊँड का रंग बदलें सुबह सुबह ही आँखें दुखने लगी। धन्यवाद।

निर्मला कपिला said...

आनन्द आ गया दोनो कवितायें पढ कर । एक बरसात को दो रंग और वो भी इतने बिम्बों से सजा कर? कमाल की रचनायें हैं धन्यवाद।

विनोद कुमार पांडेय said...

बहा आँख का पानी

टुती हुई सपन की डोरी
विरहा व्याकुल एक चकोरी
उस पर ये बरसात निगोड़ी
लिख देती है भिगो पीर में फिर से एक कहानी
बहा आँख का पानी..

लाज़वाब सुंदर रचना...धन्यवाद राकेश जी