फूलों की पांखुर से फ़िसक रही शबनम सी
साज की मुंडेरों पर थिरक रही सरगम सी
सन्ध्या के आँचल में टाँक रही गुलमोहर
निशिगन्धी महकों में लिपट खड़े मधुवन सी
याद कोई सपना बन, आंखों में तैर गई
उस पल पर जीवन की एक सांस ठहर गई
गंगा की धारा में मांझी के गीतों सी
दादी से सुनी हुई पुरखों की रीतों सी
चम्पा के सिरहाने, जूही के गजरों सी
घूँघट से झाँक रही दुल्हन की नजरों सी
याद कोई सपना बन आँखों में तैर गई
उस पल पर जीवन की एक सांस ठहर गई
लहरों की दस्तक सी, सरिता के कूलों पर
बरखा की बून्दों सी, सावन के झूलों पर
चाँदनी में भीग रहे उपवन के प्रांगण में
पुरबा की सिहरन सी मुस्काते फूलों पर
याद कोई सपना बन, नयनों में तैर गई
उस पल पर जीवन की एक सां स ठहर गई
6 comments:
याद कोई सपना बन आँखों में तैर गई
उस पल पर जीवन की एक सांस ठहर गई
यादों के झरोखों से एक सुंदर और भावपूर्ण कविता प्रस्तुत की आपने...बढ़िया कविता....धन्यवाद स्वीकारें..
प्रकृति के माध्यम से अपनी अनुभूतियों की आकर्षक अभिव्यक्ति....शुभकामनाएं।
bahut sundar abhivyakti sirji...
इस गठरी मे बहुत सुन्दर यादें समाहित हैं पूरी गठरी खोलिये। बहुत सुन्दर बधाई
सांस ठहर गई :
गंगा की धारा में मांझी के गीतों सी
दादी से सुनी हुई पुरखों की रीतों सी
चम्पा के सिरहाने, जूही के गजरों सी
घूँघट से झाँक रही दुल्हन की नजरों सी
याद कोई सपना बन आँखों में तैर गई
उस पल पर जीवन की एक सांस ठहर गई
:)
आज वाली रचना कहाँ गई भाई जी???
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