श्वेत पत्रों पे बैठी हुई शारदा, बीन के राग में गीत गाती रहे
रक्त वर्णी किये पांखुरी, विष्णु की प्रियतमा पायलें झनझनाती रहे
ज्योत्सना की परी आ धरा पे रँगे चान्दनी की किरन से दिवस आपके
और रेखा स्वयं जयश्री बन सदा, आपके भाल टीका लगाती रहे
शुभकामनायें
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पंकज के पत्रों पर रेखा लिखती है शबनम से पाती
लगी झूमने शुभ्र चांदनी तारों सा आँचल लहराती
परियां बन कर अभिलाषाएं उड़ती फिरती है आँगन में
नाच रही हर एक पंखुरी मलयज के संग संग बतियाती
मौसम ने ली ओढ़ अचानक फागुन सी रंगीन चुनरिया
प्रीत छेड़ती नई धुनों में भीगी हुई मिलन बाँसुरिया
करते हैं अभिषेक नयन की कोरों से रिस रिस कर सपने
लगा आज सीहोर आ गए राधा के संग में सांवरिया
दसों दिशाएँ हुई उल्लासित आज दिसंबर दस के दिन को
मढ़ कर स्वर्णमयी करती हैं उस रजताभ अनूठे छिन को
कमल पत्र पर उभर गई थी रेखाएं जब घनी प्रीत की
मन के इतिहासों ने सौंपा सत्र स्वयं का पूरा जिनको
नौ वर्षों के पथ में चलते कदम साथ हो गये नवग्रह
ढली प्रेरणाओं में मन की सहज भावना कर कर आग्रह
नयी नयी मंज़िल पायें नित, यही कामना सजती है अब
और लुटाते रहें आप दोनों मिल कर सब ही पर अनुग्रह
11 comments:
आपके आशीष के रुप में ये जो मुक्तक मिले हैं ये बहुत ही अमूल्य उपहार हैं । आपने पूरे परिवार का नाम जिस प्रकार से छंदों में उपयोग किया है उसने मन का छू लिया है । प्रिंट आउट लेकर जा रहा हूं शाम को सेलिब्रेशन के दौरान इसको गाकर सुनाऊंगा सभीको । पुन: आभार । तथा आशा है कि अनुज पर इसी प्रकार नेह बनाएं रखेंगें ।
पंकज जी और रेखा जी को शादी की वर्षगांठ की बहुत मुबारकबाद....आपने मौके विशेष पर शानदार प्रस्तुति दी है.
पंकज-रेखाजी को विवाह वर्षगांठ पर हार्दिक बधाई और मंगलकामनायें। इस मौके पर आपके मुक्तक बहुत अच्छे लगे राकेशजी। शुक्रिया।
आदरणीय पंकजजी वा रेखाजी को विवाह वर्षगांठ पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाये
regards
पंकजजी वा रेखाजी को विवाह वर्षगांठ पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाये |
शिवा को बखानौं कि बखानौं छ्त्रशाल को? आपके कलम की तारीफ़ करूं या गुरूदेव श्री पंकज सुबीर जी के व्यक्तित्व का...जहां दोनों का सम्मिलन हो भावों में माधुर्य का आना स्वाभाविक है। आपके माध्यम से उन्हे और भाभी जी को शादी के सालगिरह की अनंत शुभकामनाएं और एक मुक्तक-
प्रेम के पावन भोजपत्र पर अंकित सरस हृदय की रेखा
पुण्योदय है सहस जनम का कहता है ये विधि का लेखा
उसको पाकर, पाया मानो, खुशियों का इक नंदन-कानन
इसीलिये तो मगन खुशी में, मुख-पंकज को खिलते देखा
पंकज के पत्रों पर रेखा लिखती है शबनम से पाती
लगी झूमने शुभ्र चांदनी तारों सा आँचल लहराती
परियां बन कर अभिलाषाएं उड़ती फिरती है आँगन में
नाच रही हर एक पंखुरी मलयज के संग संग बतियाती
Bahut hi shabnami andaaz se kalam ki siyahi ise matmaila karne se dari hogi.
managl kamnaon ke saath
Devi Nangrani
बहुत ही सुन्दर बंद बहुत ही मीठे मौके पर!
सुबीर भैया और रेखा भाभी को बहुत बधाई !
पंकज-रेखाजी को विवाह वर्षगांठ पर हार्दिक बधाई!!!
शानदार मुक्तक!!!
Adarniy rakesh ji ..bahut din ho gaye kuch nayi rachana ki raah nihaar raha hoon..
sasneh
vinod
Naya geet kab :(
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