Sunday, May 10, 2009

माँ

चाहता था लिखूँ शब्द माँ के लिये
लेखनी एक भी किन्तु पा न सकी
जितनी ममता उमड़ गोद में है गिरी
सिन्धु से व्योम तक वह समा न सकी
ज़िन्दगी, ज्ञान, उपलब्धियाँ, प्राप्ति सब
एक वह ही रही सबका आधार है
सरगमों ने समर्पण उसे कर दिया
रागिनी कोई भी गुनगुना न सकी

शब्द अक्षम हुए कुछ भी बोले नहीं
स्वर झुका शीश अपना नमन कर रहा
भाव कर जोड़ कर आंजुरि भर सुमन
भावना के, पगों के कमल धर रहा
तेरे आशीष का छत्र छाया रहे
शीश पर हर घड़ी , बस यही कामना
आज नव सूर्य में, आज नव भोर में
यह अपेक्षा पुन: आज मैं कर रहा

राकेश
१० मई २००९

4 comments:

शोभा said...

शब्द अक्षम हुए कुछ भी बोले नहीं
स्वर झुका शीश अपना नमन कर रहा
भाव कर जोड़ कर आंजुरि भर सुमन
भावना के, पगों के कमल धर रहा
तेरे आशीष का छत्र छाया रहे
शीश पर हर घड़ी , बस यही कामना
आज नव सूर्य में, आज नव भोर में
यह अपेक्षा पुन: आज मैं कर रहा
इससे अधिक कुछ नहीं लिखा जा सकता। बधाई स्वीकारें।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर प्रस्तुति,
मातृ-दिवस की शुभ-कामनाएँ।

नीरज गोस्वामी said...

अद्भुत राकेश भाई....ऐसी रचना सिर्फ आपकी कलम से ही संभव है...
नीरज

Shardula said...

माँ को हमारा भी प्रणाम कहियेगा! आप भाग्यवान हैं जो उनके साथ थे मातृदिवस पे !