Friday, January 16, 2009

इसीलिये लिखा नहीं गीत नया कोई भी

पीर नहीं उपजी जो तूलिका डुबोता मैं
इसीलिये लिखा नहीं गीत नया कोई भी

कलियों के वादे तो सारे ही बिखर गये
उठे पांव इधर कभी, और कभी उधर गये
भावों ने ओढ़ी न शब्दों की चूनरिया
एकाकी साये थे जो, वे बस संवर गये

फूलों के पाटल पर टँगी नहीं बून्द कोई
रजनी में चन्दा ने शबनम तो बोई थी

आहों के आंसू से जितने अनुबन्ध हैं
और वे जो पलकों में अधरों में बन्द हैं
तोड़ नहीं पाये हैं कैद मगर सच ये है
वही मेरे गीतों के बिना लिखे छन्द हैं

हुआ नहीं चूम सके आकर के गालों को
आंखों में बदरी तो सुबह शाम रोई भी

आंखों में भरा रहा पतझड़ का सूनापन
सन्नाटा पीता सा चाहों का बौनापन
उंगली के पोरों पर रँगे हुए चित्रों में
अल्हड़ सी साधों की दिखती क्वांरी दुल्हन

आमंत्रण देती थी सेज सजी सपनों को
नींद मगर जागी थी, पल भर न सोई भी

11 comments:

विवेक सिंह said...

हम तो पहली लाइन पर ही ढेर हो गए ! वाह !

विधुल्लता said...

अच्छी भाव अभिव्यक्ति...कलियों के वादे तो सारे ही बिखर गयेउठे पांव इधर कभी, और कभी उधर गयेभावों ने ओढ़ी न शब्दों की चूनरियाएकाकी साये थे जो, वे बस संवर गये

Unknown said...

bahut hi sundar kavita...

संगीता पुरी said...

पीर नहीं उपजी जो तूलिका डुबोता मैं
इसीलिये लिखा नहीं गीत नया कोई भी
बहुत सुंदर !!!

मोहन वशिष्‍ठ said...

फूलों के पाटल पर टँगी नहीं बून्द कोई
रजनी में चन्दा ने शबनम तो बोई थी

बेहतरीन

Anonymous said...

ek dard ek mithas ek bhav ek man,lajawaab rachana,shabdh aarth behad behad...khubsurat

नीरज गोस्वामी said...

मान्यवर सारे के सारे शब्द तो आपके पास हैं अब प्रशंशा कैसे करें...?अद्भुत एक बार फ़िर...मौन हैं और आनंद सरिता में गोते खा रहे हैं...बस.
नीरज

Udan Tashtari said...

बेहतरीन -बेहतरीन!!! क्या बात कही है!

रंजना said...

आहों के आंसू से जितने अनुबन्ध हैं
और वे जो पलकों में अधरों में बन्द हैं
तोड़ नहीं पाये हैं कैद मगर सच ये है
वही मेरे गीतों के बिना लिखे छन्द हैं

.......
Kya kahen ??? adbhud !

Shardula said...

"उठे पांव इधर कभी, और कभी उधर गये"
वाह! अति सुन्दर !
बच्चन जी की याद आ गई:" जीवन की आपाधापी में कब वक्त मिला, कुछ देर कहीं पे बैठ, ये सोच सकूँ . . . "
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"हुआ नहीं चूम सके आकर के गालों को
आंखों में बदरी तो सुबह शाम रोई भी "
वाह !! इसके anti thesis मेरी पंक्तियां :)--
"मुस्कुराहट, मुस्कुराहट से मिली टकरा गई
आँखों से उतरी हँसी, गालों पे आ सुस्ता गई ।"
सादर शार्दुला

Shar said...

पीर नहीं उपजी ?
लिखा नहीं गीत नया कोई भी ?