Wednesday, November 26, 2008

आप जो चल दिये हैं इधर की डगर

आप जो चल दिये हैं इधर की डगर

ओस में डूब कर फूल की पांखुरी भोर की इक किरन को लगी चूमने
गंध की तितलिया साथ लेकर हवा लग गई क्यारियो की डगर घूमने
बात इतनी हुई आपके नाम को छू के पत्ता कोई था इधर आ गया
आप हैं चल दिये इस तरफ़ को लगा, इसलिये बाग सारा लगा झूमने

7 comments:

Anonymous said...

waah fiza mehek rahi hai,sundar nazm

Anonymous said...

kuch aur panktiyaan hotee to khusbuu daer tak rehtee
par sunder panktiyaan haen

संगीता-जीवन सफ़र said...

बहुत खूब!बहुत ही सुंदर!

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया।

"अर्श" said...

भोर की ओस की तरह कोमल भाव में अभिब्यक्त रचना .. बहोत ही सुंदर भाव.. आपको ढेरो बधाई साहब...

Shar said...

:)

Shar said...

Is it lake Ontario Sunset?