Saturday, November 22, 2008

चाँदनी और भी जगमगाने लगी

और उजरी जरा चांदनी हो गयी
चन्द्रमा से सुधायें बासने लगीं
ओस घुलने लगी जैसे निशिगंध में
भोर प्राची को दुल्हन बनाने लगी

यज्ञ की लौ मिली मंत्र की गूँज से
नैन में स्वप्न नूतन बनाती हुई
हाथ में फूल ले आ दिशायें खड़ीं
प्रीत की बांसुरी को बजाती हुई
वॄक्ष ने शाख अपनी हिला कर दिये
ढेर आशीष चिरकाल अनुराग के
द्वार मंगल बधाई बजाने लगे
गीत दहलीज गाने लगी फ़ाग के

होंठ से अपने शहनाईयों को लगा
मलयजें नाचती मुस्कुराने लगीं

सप्त नद नीर से, सप्त अभिषेक कर
सप्त पद के वचन फिर संजीवित हुए
और संकल्प नूतन लिये साथ में
ज़िन्दगी के नये पंथ दीपित हुए
एक पग से मिला दूसारा जो कदम
दूरियां राह की सब सिमटने लगीं
और परछाईयाँ जो रहीं राह में
आप ही आप हो दूर हटने लगीं

आरती का लिये थाल, आ मंज़िलें
शीश पर रक्त-टीका लगाने लगीं

प्रेम के पत्र लिखने लगी है नये
गंध उमड़ी हुई फूल के गाल पर
फिर दहकने लगा चिन्ह जो था बना
एक दिन मेरी सुधियों के रूमाल पर
जो उमा ने कहा गुनगुनाते हुए
जो रमा ने निकल सिन्धु से था कहा
शब्द वह आज आकर नये अर्थ में
मानसी मेरी अँगनाईयों में बहा

हाथ में आगतों की सजा मेंहदियाँ
कल्पना आज फिर से लजाने लगी

10 comments:

seema gupta said...

प्रेम के पत्र लिखने लगी है नये
गंध उमड़ी हुई फूल के गाल पर
फिर दहकने लगा चिन्ह जो था बना
एक दिन मेरी सुधियों के रूमाल पर
जो उमा ने कहा गुनगुनाते हुए
जो रमा ने निकल सिन्धु से था कहा
शब्द वह आज आकर नये अर्थ में
मानसी मेरी अँगनाईयों में बहा
" again mind blowing words and thoughts..."

Regards

!!अक्षय-मन!! said...

सटीक शब्द......
एक अच्छी रचना बधाई इस अनमोल रचना के लिए.......
REGARDS
AKSHAY-MANN
http://akshaya-mann-vijay.blogspot.com/

Shar said...

"सप्त नद नीर से, सप्त अभिषेक कर
सप्त पद के वचन फिर संजीवित हुए
और संकल्प नूतन लिये साथ में
ज़िन्दगी के नये पंथ दीपित हुए
एक पग से मिला दूसारा जो कदम
दूरियां राह की सब सिमटने लगीं
और परछाईयाँ जो रहीं राह में
आप ही आप हो दूर हटने लगीं"

बहुत भाव-भीना! विवाह मंडल की याद दिला दी आपने कविराज !

Vinay said...

बहुत सुन्दर!

शोभा said...

अच्छा लिखा है।

mehek said...

madhura ras mein dubi bahut khubsurat rahcana badhai

mehek said...

madhura ras mein dubi bahut khubsurat rahcana badhai

नीरज गोस्वामी said...

होंठ से अपने शहनाईयों को लगा
मलयजें नाचती मुस्कुराने लगीं
विलक्षण रचना...आप की चरण रज् कहीं से मिल जाए तो माथे पे लगा कर धन्य हो जाऊँ...
नीरज

राकेश खंडेलवाल said...
This comment has been removed by the author.
राकेश खंडेलवाल said...

स्नेह आपका लिखवा देता है शब्दों को एक छन्द में
और भावना लिये तूलिका आकर उनको रँग देती है
भाव आपके मन में भी जो उठते,वह उधार ले लेकर
मेरी कलम शब्द से उनको चित्रित कर के रख देती है.

सादर

राकेश

November 23, 2008