और उजरी जरा चांदनी हो गयी
चन्द्रमा से सुधायें बासने लगीं
ओस घुलने लगी जैसे निशिगंध में
भोर प्राची को दुल्हन बनाने लगी
यज्ञ की लौ मिली मंत्र की गूँज से
नैन में स्वप्न नूतन बनाती हुई
हाथ में फूल ले आ दिशायें खड़ीं
प्रीत की बांसुरी को बजाती हुई
वॄक्ष ने शाख अपनी हिला कर दिये
ढेर आशीष चिरकाल अनुराग के
द्वार मंगल बधाई बजाने लगे
गीत दहलीज गाने लगी फ़ाग के
होंठ से अपने शहनाईयों को लगा
मलयजें नाचती मुस्कुराने लगीं
सप्त नद नीर से, सप्त अभिषेक कर
सप्त पद के वचन फिर संजीवित हुए
और संकल्प नूतन लिये साथ में
ज़िन्दगी के नये पंथ दीपित हुए
एक पग से मिला दूसारा जो कदम
दूरियां राह की सब सिमटने लगीं
और परछाईयाँ जो रहीं राह में
आप ही आप हो दूर हटने लगीं
आरती का लिये थाल, आ मंज़िलें
शीश पर रक्त-टीका लगाने लगीं
प्रेम के पत्र लिखने लगी है नये
गंध उमड़ी हुई फूल के गाल पर
फिर दहकने लगा चिन्ह जो था बना
एक दिन मेरी सुधियों के रूमाल पर
जो उमा ने कहा गुनगुनाते हुए
जो रमा ने निकल सिन्धु से था कहा
शब्द वह आज आकर नये अर्थ में
मानसी मेरी अँगनाईयों में बहा
हाथ में आगतों की सजा मेंहदियाँ
कल्पना आज फिर से लजाने लगी
10 comments:
प्रेम के पत्र लिखने लगी है नये
गंध उमड़ी हुई फूल के गाल पर
फिर दहकने लगा चिन्ह जो था बना
एक दिन मेरी सुधियों के रूमाल पर
जो उमा ने कहा गुनगुनाते हुए
जो रमा ने निकल सिन्धु से था कहा
शब्द वह आज आकर नये अर्थ में
मानसी मेरी अँगनाईयों में बहा
" again mind blowing words and thoughts..."
Regards
सटीक शब्द......
एक अच्छी रचना बधाई इस अनमोल रचना के लिए.......
REGARDS
AKSHAY-MANN
http://akshaya-mann-vijay.blogspot.com/
"सप्त नद नीर से, सप्त अभिषेक कर
सप्त पद के वचन फिर संजीवित हुए
और संकल्प नूतन लिये साथ में
ज़िन्दगी के नये पंथ दीपित हुए
एक पग से मिला दूसारा जो कदम
दूरियां राह की सब सिमटने लगीं
और परछाईयाँ जो रहीं राह में
आप ही आप हो दूर हटने लगीं"
बहुत भाव-भीना! विवाह मंडल की याद दिला दी आपने कविराज !
बहुत सुन्दर!
अच्छा लिखा है।
madhura ras mein dubi bahut khubsurat rahcana badhai
madhura ras mein dubi bahut khubsurat rahcana badhai
होंठ से अपने शहनाईयों को लगा
मलयजें नाचती मुस्कुराने लगीं
विलक्षण रचना...आप की चरण रज् कहीं से मिल जाए तो माथे पे लगा कर धन्य हो जाऊँ...
नीरज
स्नेह आपका लिखवा देता है शब्दों को एक छन्द में
और भावना लिये तूलिका आकर उनको रँग देती है
भाव आपके मन में भी जो उठते,वह उधार ले लेकर
मेरी कलम शब्द से उनको चित्रित कर के रख देती है.
सादर
राकेश
November 23, 2008
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