Monday, November 3, 2008

कौन हो तुम ?

कौन हो तुम ?

भोर की पहली किरण की अरुणिमा हो
या छिटक कर चाँद से बिखरी हुई तुम चाँदनी हो
तुम सुरभि हो मलयजों की बाँह पकड़े खेलती सी
झील में जल की तरंगों की बजी इक रागिनी हो ?

कौन हो तुम ?

क्या वही तुम कैस ने जिसके लिये सुध बुध गंवाई
क्या तुम्हीं जिसके लिये फ़रहाद पर्वत से लड़ा था
क्या तुम्ही तपभंग विश्वामित्र का कारण बनी थीं
क्या तुम्हारे ही लिये छल इन्द्र ने इक दिन करा था ?

कौन हो तुम ?

कल्पना की वीथियों का गुनगुनाता गीत कोई
भावना की प्रेरणा का क्या तुम्ही आधार कोमल
क्या तुम्ही जिसके लिये इतिहास ने गाथा रची हैं
क्या तुम्ही हो ध्याम में जिसके गय युग बीत, हो पल ?

कौन हो तुम ?

9 comments:

Udan Tashtari said...

कल्पना की वीथियों का गुनगुनाता गीत कोई
भावना की प्रेरणा का क्या तुम्ही आधार कोमल
क्या तुम्ही जिसके लिये इतिहास ने गाथा रची हैं
क्या तुम्ही हो ध्याम में जिसके गय युग बीत, हो पल ?

कौन हो तुम ?


--अद्भुत..भाई जी. आपको पढ़ो..पढ़ो...पढ़ो...और बस पढ़ते जाओ.

...बस, उससे ज्यादा अपने बस में नहीं...इसकी परछाई के आसपास भी लिखना संभव नहीं...बस, आपका आशीष बना रहे तो सब मनोकामना पूर्ण.

seema gupta said...

भोर की पहली किरण की अरुणिमा हो
या छिटक कर चाँद से बिखरी हुई तुम चाँदनी हो
तुम सुरभि हो मलयजों की बाँह पकड़े खेलती सी
झील में जल की तरंगों की बजी इक रागिनी हो ?
" marvelleous...."

Regards

पारुल "पुखराज" said...

aabhaar!!

ghughutibasuti said...

बहुत सुंदर !
कुछ कहने के लिए शब्द नहीं हैं ।
घुघूती बासूती

रंजना said...

बहुत ही सुंदर गीत......अप्रतिम,अद्भुत सदैव की भांति.

अमिताभ मीत said...

क्या कहूँ ?

नीरज गोस्वामी said...

शब्दहीन हूँ...क्या कहूँ?
नीरज

Geetkaar said...

है सबका आभार, आप ही बने प्रेरणा लिखता जाऊँ
नये बिम्ब मैं नित्य तलाशूँ उड़ने दूँ कुछ और कल्पना
स्नेह आपका छू जाता है मन की सुधियों की अमराई
और शब्द में ढल कर बन जाता है कोई सुघड़ अल्पना

Shar said...

आप ही 'गीतकार' हैं?
बताना चाहिये था ना आपको पहले:)