Wednesday, August 29, 2007

समीर भाई- यह बरस भी शुभ हो

लिखूँ बधाई और साथ में केक आपको भेज रहा हूँ
ताकि बाँट कर सबसे खायें, और शिकायत कोई करे न
सबसे छुप कर वर्ष गाँठ जो प्रणय दिवस की मना रहे हो
शायद सोचा तुम्हें तकाजा मिष्ठानों का कोई करे न










इतिहासों में लिखा हुआ है स्वर्ण- पत्र पर
जब समीर की पूर्ण हुई थी सतत साधना
यज्ञभूमि उसकी स्मॄतियों से महक रही है
यदों में खो, पुलक र्ही है अभी भावना
यह सुरभित पल बरस बरस हों और घनेरे
जहाँ स्पर्श हो, बहीं खिल उठे पुष्प-वाटिका
दुहराता है आज पुन: इस पावल दिन पर
पोर पोर मेरे मन का बस यही कामना

2 comments:

Pankaj Oudhia said...

हमारी ओर से भी बधाई और शुभकामनाए।

Udan Tashtari said...

बहुत आभार राकेश भाई आपका मेरी और साधना की तरफ से. आपका स्नेह बना रहे यही कामना है.

-दर्द हिन्दुस्तानी जी का भी बहुत आभार.