Thursday, August 9, 2007

हाय रसोई और हम

हुआ यों कि श्रीमतीजी ने एकदम एलान कर दिया कि कुछ दिनों के लिये वे हमसे छुटकारा पाना चाहती हैं, इसलिये उन्होने अपनी टिकट बुक करा ली और तीसरे दिन ही प्रस्थान कर दिया अपने मायके के लिये. पहले तो हमने सोचा कि चलो अच्छा हुआ. कुछ दिन तक हम सारे चिट्ठे ध्यान देकर भली भांति पढ़ेंगे और समझने की ईमानदार कोशिश भी करेंगे. एक लिस्ट भी बना ली जिसमें सीधे साधे चिट्ठे जैसे उड़नतश्तरी, फ़ुरसतिया और दिल के दर्पण या दिल के दर्म्याँ को कोई जगह नहीं दी. सोचा उन चिट्ठों को पढ़ना भी क्या पढ़ना जो सीधी बात करते हैं.

खैर, पहले दिन ही जैसे यह सोचा कि खाना पीना निपटा कर चिट्ठे पढ़ेंगे, सारा प्रोग्राम धरा का धरा रह गया. चिट्ठे पढ़ पाना तो दूर, कम्प्यूटर तक पहुँचने की नौबत ही नहीं आई. रसोई से बाहर निकल पाना असम्भव हो गया. सारी कोशिशें बस यों सिमट कर रह गईं :-




तुमने कहा चार दिन, लेकिन छह हफ़्ते का लिखा फ़साना
सच कहता हूँ मीत, तुम्हारा महंगा पड़ा मायके जाना

कहां कढ़ाई, कलछी, चम्मच,देग, पतीला कहां कटोरी
नमक मिर्च हल्दी अजवायन, कहां छुपी है हींग निगोड़ी
कांटा छुरी, प्लेटें प्याले, सासपेन इक ढक्कन वाला
कुछ भी हमको मिल न सका है, हर इक चीज छुपा कर छोड़ी

सारी कोशिश ऐसी जैसे खल्लड़ से मूसल टकराना
सच कहता हूँ मीत तुम्हारा महंगा पड़ा मायके जाना

आटा सूजी, मैदा, बेसन नहीं मिले, न दाल चने की
हमने सोचा बिना तुम्हारे यहाँ चैन की खूब छनेगी
मिल न सकी है लौंग, न काली मिर्च, छोंकने को न जीरा
सोड़ा दिखता नहीं कहीं भी, जाने कैसे दाल गलेगी

लगा हुआ हूँ आज सुबह से, अब तक बना नहीं है खाना
सच कहता हूँ मीत, तुम्हारा महंगा पड़ा मायके जाना

मेथी, केसर,काजू,किशमिश, कहीं छुपे पिस्ते बदाम भी
पिछले महीने रखी बना जो, मिली नहीं वो सौंठ आम की
ढूँढ़ छुहारे और मखाने थका , न दिखती कहीं चिरौंजी
जिनके परस बिना रह जाती खीर किसी भी नहीं काम की

सारी कैबिनेट उलटा दीं, मिला न चाय वाला छाना
सच कहता हूँ मीत, तुम्हारा महंगा पड़ा मायके जाना

आज सुबह जब उठ कर आया, काफ़ी, दूध, चाय सब गायब
ये साम्राज्य तुम्हारा, इसको किचन कहूँ या कहूँ अजायब
कैसे आन करूँ चूल्हे को, कैसे माइक्रोवेव चलाऊँ
तुम थीं कल तक ताजदार, मैं बन कर रहा तुम्हारा नायब

कैलेन्डर की तस्वीरों से, सूजी का हलवा दे ताना
सच कहता हूँ मीत, तुम्हारा महंगा पड़ा मायके जाना

आलू, बैंगन, गोभी, लौकी, फ़ली सेम की और ग्वार की
सब हो गये अजनबी, टेबिल पर बोतल है बस अचार की
कड़वा रहा करेला, सीजे नहीं कुन्दरू, मूली गाजर
दाल मूँग की जिसे उबाला, आतुर है घी के बघार की

नानी के संग, आज बताऊँ याद आ रहे मुझको नाना
सच कहता हूँ मीत, तुम्हारा महंगा पड़ा मायके जाना

डोसा, इडली, बड़ा, रसम के साथ याद आती है सांभर
बड़ा-पाव, उत्तपम, खांडवी, पूरन-पोली, वाड़ी -भाकर
बाटी, दाल, चूरमा, गट्टे, छोले और तंदूरी रोटी
मुँह में घुलते हुए याद बन, चटनी संग उज्जैनी पापड़

संभव नहीं एक पल को भी, आँखों से इनकी छवि जाना
सच कहता हूँ मीत, तुम्हारा महंगा पड़ा मायके जाना

पीज़ा हट के पीज़ा में अब स्वाद नहीं कुछ आ पाता है
बर्गर में लगता है मुझको, भूसा सिर्फ़ भरा जाता है
चाट-पापड़ी, और कचौड़ी, स्वादहीन बिन परस तुम्हारे
और समोसा बहुत बुलाया, लेकिन पास नहीं आता है

संदेसा पाकर, उड़ान ले अगली जल्दी वापिस आना
सच कहता हूँ मीत तुम्हारा महंगा पड़ा मायके जाना

रतलामी सब सेव खो गये, मिली न भुजिया बीकानेरी
दालमोठ के पैकेट गायब, सूखे पेठे और गँड़ेरी
आलू के लच्छे या चिवड़ा गुड़धानी न भुने चने हैं
भूल भुलैया बनी रसोई, पेट बजाता है रणभेरी

तुम आओ तो लिखा नाम है जिस मेरा, पाऊं खाना
सच कहता हूँ मीत, तुम्हारा महंगा पड़ा मायके जाना

11 comments:

अनूप शुक्ल said...

दर्द की अभिव्यक्ति सुनकर मन दुखी हो गया। अब आप गाना गाइये- तुम्ही ने दर्द दिया है, तुम्हीं दवा देना।

mamta said...

संजीव कपूर का शो जो zee पर आता है उसे देखना शुरू कर दीजिए !!

अनूप भार्गव said...

बढिया है ...

Udan Tashtari said...

जब लिस्ट ही गलत बानायेंगे तो ये तो होना ही था. बाकि सब तो फिर भी चल जाते और हमारी लिस्ट से मैच कर जाते मगर उड़न तश्तरी...न बाबा न!! अब झेलिये. :) भौजी को नमन..अच्छा अकेला छोड़ गई.

Pratyaksha said...

ओह ! आप तो भयानक मुसीबत में हैं । जल्दी से वापस बुला लीजिये ।

Mohinder56 said...

आपके दुख से आंख में और पकवानो के नाम से मुंह में पानी आ गया... कैसे न आता सब के सब नाम गिनवा दिये आप ने.

अति सुन्दर... घर नारी बिन समसान बराबर

रवि रतलामी said...

खुशी की बात यह रही कि आपकी सूची में मेरे चिट्ठे का नाम नहीं है. :)

चंद शुरूआती लाइनें गद्य की पढ़कर आया कि ये गीतकार महोदय को क्या हो गया - तबीयत तो ठीक है? पर फिर दुख भरी कहानी पढ़ने को मिली...

Unknown said...

चलो पता तो चला खाना बनाना कविता लिखना जैसा आसान काम नहीं है। प्रेरणा भी भरे पेट ही मिलती है!!

मज़ा आया पढ़कर

Divine India said...

इस मजेदार रस का भी आस्वादन न कर पाता अगर भाभी जी मायका जाना न होता…
पर दु:ख है आपके हाल को सुनकर…
जल्द ही बुलावा भेजें और फिर मिलन के गीत को अलग रुप में लिखे…।

Dr.Bhawna Kunwar said...

ओह! ओह! ये तो बहुत बुरा हुआ अपको भूखा ही रहना पड़ा, बड़ा दुख हुआ जानकर पर अब आप परेशान मत होईये आप नहीं बना पाते तो कोई बात नहीं जरा सा कष्ट कीजिये मेरे ब्लॉग पर आईये और जो मन करे वही खाईये बिना मेहनत के... :D

Dr.Bhawna

Krishna Kumar khandelwal said...

tum aao to jis per mera likha naan wo khaun khanaa.,
krsnaKhandelwal
www.krsnakhandelkwal.wordpress.com