समय के परों पर किसी की अधूरी कहानी लिखी ज़िन्दगी ने तड़प के
रहा बीनता जो उमर की डगर पर झरी स्वप्न की पांखुरी हाथ मलते
लिखीं दॄष्टि की रश्मियाँ जो क्षितिज पर टँगे शून्य को ताकती रह गईं थीं
लिखी भावना की तरंगें ह्रदय के भंवर में उलझती हुई बह गई थीं
लिखा ज़िन्दगी ने हुये शुष्क सावन में घिरता हुआ जेठ का कोप भारी
लिखी जिसकी गलियों से आती बहारें कही दूर ही राह में रह गई थी
लिखी पृष्ठ इतिहास के पर किसी की अधूरी कहानी दिवस ने पलट के
लिखीं आंसुओं की झड़ी रह गई थी हुई कैद पलकों मे बिन बूंद छलके
अधूरी कहानी शुरू जो हुई थी लिए कुछ सितारे जनम कुंडली मे
सभी शुभ मुहूरत में ले लाभ का धन खड़े द्वार आकर के इक मंडली में
मगर भाग्य के एक तिरकौन से जब छनी रश्मियाँ वक्र होकर चली तो
लिखी वह कहानी हथेली की रेखा हुई श्याम लटकी गली संदली में
लिखी भोज के झरझरे पत्र पर इक, किसी की अधूरी कहानी घटित ने
रही एक अस्पष्ट सी पर लिखावट हुए पृष्ठ बेरंग पर अब समय के
बदलती रही साथ मन्वन्तरों के मगर हो रही बस अधूरी कहानी
बंधी रह गई बढ़ रही बंदिशों में, चली एक नदिया सी बहती रवानी
कटी उद्गमों से चली तो सफर में बिना मंज़िलों का पता साथ लेकर
कहानीनिगारों की नाकामियों पर, रही खिलखिलाती अधूरी कहानी
लिखी लेखनी ने किसी की अधूरी कहानी यहाँ आज फिर गीत बनके
मगर शब्द फिर रह गये हैं अधूरे, मसी न बनी दृग से जो अश्रु ढलके
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