Monday, August 12, 2013

कैसी हुई त्रासदी

जितने पत्र सँजो रक्खे थे उड़ा ले गईं उन्हें हवायें
कैसी हुई त्रासदी बैठो पास तनिक, तुमको बतलायें
 
अपनी अँगनाई पर ठहरे रहे सदा बिजली के घेरे
मन के गलियारों में उमड़े आ मावस से गहन अँधेरे
संवेदन की धड़कन जैसे रुकती रही पीर को लख कर
अधजल गगरी जैसे छलके, भावों के जो चित्र उकेरे
 
बन कर बाढ़ उमड़ती आईं मन में हर पल नई व्यथायें
कैसी हुई त्रासदी बैठो पास तनिकतुमको बतलायें
 
आंखों में आँजे थे सोचा हो लेंगे ये सपन सुनहरे
पर फूलों के सीने पर ही लगते हैं शूलों के पहरे
मणियों की अभिलाषा लेकर मथा झील के सोये जल को
उतने कंकर मिले अधिक हम डूबे जितना जाकर गहरे
 
उगी कंठ से लौटा दीं पर घाटी ने हर बार सदायें
कैसी हुई त्रासदी बैठो पास तनिक, तुमको बतलायें
 
बहुत पुकारा मिला न कोई पथ पर साथ निभाने वाला
आगे या पीछे रह कर ही चला साथ में साया काला
अपना था प्रतिबिम्ब हौसला देने वाला शून्य विजन में
वरना हर पनघट ने सौंपा, हमको केवल रीता प्याला
 
पास बुलाती हैं अब फ़ोर से बचपन वाली चित्रकथायें
कैसी हुई त्रासदी बैठो पास तनिक, तुमको बतलायें

 

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