Friday, September 10, 2010

मैने तो बस शब्द लिखे हैं

जो गीतों का सॄजन कर रहा वो मैं नहीं और है कोई
मैने तो बस कलम हाथ में अपने लेकर शब्द लिखे हैं

जो ढले हैं छंद में वे भाव किसके हैं, न जाने
जो पिरोये बिम्ब हैं वे हैं नये या हैं पुराने
अन्तरों में कौन से सन्दर्भ की गांठें लगीं हैं
और किस की लय लगी है गीत की सरिता बहाने

भटक रहा हूँ मैं भी यह सब प्रश्न लिये द्वारे चौबारे
किन्तु अंधेरे ही छाये हर इक द्वारे पर मुझे दिखे हैं

किस तरह बन फूल संवरे कागज़ों पर आन अक्षर
रह गये हैं शब्द किसकी रागिनी में आज बंधकर
कौन करता है प्रवाहित इस सरित को, कौन जाने
मैं धुंये के बिम्ब में ही रह गया लगता उलझकर

शायद कोई किरन ज्योति की आये आकर मुझे बताये
क्या है वह जिस पर इस मन के आशा व विश्वास टिके हैं

कौन सहसा खींच देता चित्र,श्ब्दों में पिरोकर
व्योम भरता बिन्दु में, ला एक मुट्ठी में सम्न्दर
प्रेरणा में कल्पना में चेतना में भावना में
फूँकता अभिव्यक्तियों में धड़कनें अपनी समोकर

ढाल रहा है कौन न जाने स्वर के सांचे में शब्दों को
किसका है अलाव न जाने,जिसमें ये सब सदा सिके हैं

3 comments:

Udan Tashtari said...

जो गीतों का सॄजन कर रहा वो मैं नहीं और है कोई
मैने तो बस कलम हाथ में अपने लेकर शब्द लिखे हैं

-तभी तो, सारा कलम का कमाल है.

निर्मला कपिला said...

इन गीतों मे माँ शारदे की अनुपम कृपा है। बहुत सुन्दर गीत है बधाई।

Anonymous said...

Iski dhun kaisi hogi?