जी हाँ मुझको शब्द चाहिये
शब्द कि जिनकी संरचना में छुपे हुए हों कोई मानी
कोरे खाकों वाले केवल नहीं चाहता मैं बेमानी
शब्द कि जिनसे उड़ न पाये गंध तनिक भी वासीपन की
शब्द उतर जायें सीने में,जो प्रतिध्वनि बन कर धड़कन की
मुझको ऐसे शब्द चाहिये
शब्द हाँ मुझे शब्द चाहिये
शब्द कभी न लिखे गये हों,आकॄति में ढलने से पहले
शब्द,पीर का हर इक अक्षर जिनकी बाँह थाम कर बहले
शब्द कर सकें जो संप्रेषित मन में उठते उद्गारों को
शब्द मुट्ठियों में जो सीमित कर दे अगणित संसारों को
बस ऐसे कुछ शब्द चाहिये
शब्द हाँ मुझे शब्द चाहिये
शब्द कि जिनसे फूटें अंकुर आखों में कोमल सपनों के
शब्द बन सकें सावन के घन जो मन की गहरी तपनों के
शब्द निरन्तर गति पाता हो जिनसे अभिलाषा का निर्झर
शब्द तोड़ दें अविश्वास का सन्नाटा जो छाया भू पर.
बस कुछ ऐसे शब्द चाहिये
जी हाँ मुझको शब्द चाहिये.
7 comments:
आपके पास तो वैसे भी शब्दों का भंडार है भला और किससे आशा करते है शब्द का, माँ सरस्वती की कृपा रहे बस शब्दों की कोई कमी नही होगी..शब्द माँगने के बहाने भी शब्दों की खूबसूरत प्रस्तुति...सुंदर गीत..बहुत बहुत धन्यवाद राकेश जी..
आप जिस रोज शब्द खोजेंगे उस रोज तो हम कब्र में गड़े मूँह छिपा रहे होंगे..ऐसी भी क्या दुश्मनी नये साल में...गुरु जी!!
’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’
-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.
नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'
कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.
-सादर,
समीर लाल ’समीर’
शब्द निरन्तर गति पाता हो जिनसे अभिलाषा का निर्झर
शब्द तोड़ दें अविश्वास का सन्नाटा जो छाया भू पर.
बस कुछ ऐसे शब्द चाहिये
जी हाँ मुझको शब्द चाहिये.
बहुत ही सुन्दर नव-गीत है जी!
बधाई!
:)
sundar
आपकी रचनाओं को पढने आया हूँ और आता रहूँगा - कुछ कहने के लिए ना मेरे शब्द हैं और न साहस. सादर नमन.
naya geet kab?
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