Tuesday, March 17, 2009

देह में बज रही बांसुरी

चांदनी में घुलीं भोर की रश्मियां
दूध में टेसुओं की घुली पांखुरी
केसरी क्यारियों से उठी गंध की
आपकी देह में बज रही बांसुरी
यों लगा आज रतिकान्त की चाहना
शिल्प में ढल के आई मेरे सामने
याकि वरदान बन कर संवर आई है
कामनाओं के जल से भरी आंजुरी

2 comments:

Udan Tashtari said...

भाई जी

आपकी कलम से इतना छोटा सा गीत-है मगर बहुत सुन्दर!!!

Shar said...

Vrindavan ho ke aaye hain ? :)
Adbhut!! Ati sunder!