तारकों से टपकती हुई ओस में
रात भर थी घुली गुनगुनी चांदनी
एक नीहारिका के अधर पर टिकी
गुनगुनाती रही मुस्कुरा रागिनी
स्वर मिला ओस से, पांखुरी पर ठिठक
एक प्रतिमा उभरने लगी रूप की
चांद का बिम्ब चेहरा दिखाने लगा
ओढ़नी ओढ़ कर थी खड़ी धूप की
रत्नमय हो सजी वीथिकायें सभी
जैसे आभूषणों की पिटारी खुली
गंध निशिगन्ध की बात करती हुई
केतकी की महक से खड़ी मोड़ पर
बन दुल्हन सज गईम धान की बालियां
स्वर्ण गोटे के परिधान को ओढ़ कर
हाथ सरसों के पीले किये खेत ने
ताल की सीढ़ियां गीत गाने लगीं
पाग पीली धरे शीश टेसू हँसे
और चंचल घटा लड़खड़ाने लगी
पत्तियों पे रजत मुद्रिका सी सजी
ओस की बून्द कुछ हो गई चुलबुली
राह पनघट की जागी उठी नींद से
ले उबासी, खड़ी आँख मलती हुई
भोर दे फूँ क उनको बुझाने लगी
रात की ढिबरियाँ जो थीं जलती हुई
थाल पूजाओं के मंदिरों को चले
स्वर सजे आरती के नये राग में
गंध की तितलियां नॄत्य करने लगीं
शाख पर उग रही स्वर्ण सी आग में
रंग लेकर बसन्ती बही फिर हवा
बालियां कोंपलें गोद उसकी झुलीं
कंबलों को हटा लेके अंगड़ाइयाँ
धूप ने पांव अपने पसारे जरा
खोल परदा सलेटी, क्षितिज ने नया
रंग ला आसमानी गगन में भरा
डोर की शह मिली तो पतंगें उड़ीं
और सीमायें अपनी बढ़ाने लगीं
पेंजनी खूँटियों से उतर पांव में
आ बँधी और फिर झनझनाने लगीं
चढ़ गई आ खुनक देह पर किशमिशी
इक कनक की तुली, दूध में थी धुली
8 comments:
गणतंत्र दिवस पर आईए एक बेहतर लोकतंत्र की स्थापना में अपना योगदान दें...जय हो..
ATI SUNDAR BHAWABHIVYKTI....SMRPIT RHIYE....
गणतंत्र दिवस की शुभकामना ..
गणतंत्र की जय हो . आपको एवं आपके परिवार को गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
"रत्नमय हो सजी वीथिकायें सभी
जैसे आभूषणों की पिटारी खुली"
प्रकृति का इतना अनोखा चित्रण !
"बन दुल्हन सज गई धान की बालियां
स्वर्ण गोटे के परिधान को ओढ़ कर
हाथ सरसों के पीले किये खेत ने
ताल की सीढ़ियां गीत गाने लगीं"
वाह!वाह!
"पत्तियों पे रजत मुद्रिका सी सजी
ओस की बून्द कुछ हो गई चुलबुली"
नटखट है!!
"राह पनघट की जागी उठी नींद से
ले उबासी, खड़ी आँख मलती हुई
भोर दे फूँक उनको बुझाने लगी
रात की ढिबरियाँ जो थीं जलती हुई
थाल पूजाओं के मंदिरों को चले
स्वर सजे आरती के नये राग में
गंध की तितलियां नॄत्य करने लगीं
शाख पर उग रही स्वर्ण सी आग में"
अद्भुत!!
"कंबलों को हटा लेके अंगड़ाइयाँ
धूप ने पांव अपने पसारे जरा"
:)
"पेंजनी खूँटियों से उतर पांव में
आ बँधी और फिर झनझनाने लगीं
चढ़ गई आ खुनक देह पर किशमिशी
इक कनक की तुली, दूध में थी धुली"
वाह्! क्या कहने!
बहुत सुंदर......गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं।
अति सुन्दर...
आपको एवं आपके परिवार को गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
डा. रमा द्विवेदी said...
बहुत खूब..नूतन प्रतीकों का प्रयोग और सुन्दर बिंब ...अनुपम...सादर..
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