एक बार फिर हुए धमाके, फिर से हुआ सवाली मैं
फिर तूफ़ान उठेगा शायद एक चाय की प्याली में
एक बार फिर भाषण होंगें, कुछ नारे लग जायेंगे
एक बार फिर श्वेत कबूतर गगन उड़ाये जायेंगे
एक बार फिर दोहराया जायेगा, गौतम गान्धी को
शब्द उछाले जायेंगे, " हम रोकेंगे इस आन्धी को "
कब तक ओट शिखण्डी वाली कारण बने पराजय का
कब तक बूझ नहीं पायेंगे हम शकुनि का आशय क्या ?
कितनी बार गिनेंगे गिनती, शिशुपाली अपराधों की
कितनी बार५ एड़ियाँ अपनी लक्ष्य बनेंगी व्याधों की
कितनी बार परीक्षा आखिर लाक्षागॄह में देनी है
कब तक थोथे शान्ति-पर्व की हमें दुहाई देनी है
कब तक नगर जलेगा ? शासक वंशी में सुर फूँकेंगे
कब तक शुतुर्मुर्ग से हम छाये खतरों से जूझेंगे
कब तक ज़ाफ़र, जयचन्न्दों को हम माला पहनायेंगे
कब तक अफ़ज़ल को माफ़ी दे, हम जन गण मन गायेंगे
सोमनाथ के नेत्र कभी खुल पाये अपने आप कहो
उठो पार्थ गाण्डीव सम्भालो, और न कायर बने रहो
जो चुनौतियाँ न स्वीकारे, कायर वह कहलाता है
और नहीं इतिहास नाम के आगे दीप जलाता है
8 comments:
good janab good. maja aa gya. narayan narayan
Bahut Khoob!
Pauranik kathaayein, itihaas aur vartmaan!
Aaj se judi durghatanaaon pe toot jaaye jab man, tab hi ho pata hai bhavana ka aisa teevr bahaav.
Likhte rahein.
aur naa kaayar bane roho, uthi paarth gaandeev sambhaalo,achchi anubhuti hai ,badhai
बढिया कविता - पर कहां है वो अर्जुन जो गांडीव उठा पाये... अब तो सब असहाय, सहमें से लग रहे हैं इस महाभारत की लडाई में..
बहुत अच्दी कविता।
रामधारी सिंह दिनकर का आेज नजर आता है। बहुत बहुत साधुवाद
It sounds good but do you remember the most used word couple of weeks back "HINDU AATANKWAAD". Kavita tak thik hai, usase aage thik nahin hai. Bhole bhale hundu josh me aa jaate hain aur baad me unhe hindu aatankwad ke naam par torture hone lagta hai.
सर्वेशजी
यही भावना हमें गुलामी के पथ पर ले जाती है
क्याहासिल है हुआ हज़ारों की हत्या करवा कर के
राजनीति की भाषा छोड़ो, बन्धु झांक घर में देखो
हम हर बार पिटे हैं सूली पर खुद को चढ़वा करके
चन्द्रमौलीजी,
अर्जुन भी हम, हमीं कॄष्ण हैं
आवश्यक खुद को पजचानें
अब रणभेरी सुननी होगी
बहुत सुनी वंशी की तानें
अपने ही कांधों पर हमको
सारा भार उठाना होगा
वे अशक्त हैं जो कि स्वयंभू होने का न मतलब जानें
कब तक वसुधा राह तकेगी किसी कृष्ण के फ़िर आने की
कब तक मानव जाति पार्थ के लिए भला अकुलायेगी
लिक्खेगा इतिहास यहाँ जब मेरी चुप्पी का किस्सा
मेरी झुकती पलकें तब किस भांति उसे झुठलाएगी
-आलोक
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