Sunday, October 11, 2009

पंकज सुबीर जी- जन्मदिन शुभ हो

भाल टीका लगाती रहे जयश्री
हो कथा सत्यनारायणी आँगना
दीप्त हो आपकी राह, हर मोड़ पर
और बाधाओं से हो नहीं सामना



हर सितारा चले चाल अनुकूल ही
औ’ दिशायें सभी आपकी मित्र हों
जो क्षितिज पर बनें भोर में सांझ में
आपके ही सभी रंगमय चित्र हों
द्वार गूँजे सदा प्रीत की बाँसुरी
भारती तान अपनी सुनाती रहे
पांव में सरगमें बाँध कर रागिनी
नॄत्य करती रहे, गुनगुनाती रहे



कोंपलें पल की होती रहें अंकुरित
ईश से कर रहा हूँ यही प्रार्थना



आपका पथ सजाती रहे रात दिन
ओस भीगी हुई फूल की पांखुरी
भोर गंगाजली से उंड़ेली हुई
सांझ हो अर्चना की भरी आंजुरी
मंत्रपूरित रहे दोपहर आपकी
हो निशा चाँदनी में नहाये हुए
और मौसम सुनाता रहे बस वही
गीत जो आपने गुनगुनाये हुए



आपकी लेखनी से सहज ही खुले
हो कहीं कोई भी एक संभावना



नित्य जलते रहें दीप विश्वास के
और संकल्प, संकल्प नूतन करें
लौ अखंडित रहे ज्ञान की प्रज्ज्वलित
प्राण निष्ठाओं के सौष्ठव से भरें
आपका पायें सान्निध्य जो भी वही
पुष्प की वाटिका से सँवरते रहें
गीत हो हो गज़ल या कहानी कोई
आपका स्पर्श पायें सँवरते रहें



लिख रहा हूँ ह्रदय में उठी भावना
जो समय मिल सके तो इसे बाँचना

9 comments:

Udan Tashtari said...

अरे वाह!! पंकज मास्साब का जन्म दिन...बहुत बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ.

निर्मला कपिला said...

वाह आज सुबीर जी का जन्म दिन है सही समय पर पता चल गया उन्हें बहुत बहुत बधाई और आपका धन्य्वाद हमे खबर देने के लिये

पंकज सुबीर said...

आभारी हूं और अभिभूत हूं । जन्‍मदिन की इससे अच्‍छी भेंट और नहीं हो सकती है । अनुज पर इसी प्रकार स्‍नेह बनाये रखें । प्रणाम

रविकांत पाण्डेय said...

गुरूदेव पंकज सुबीर जी के लिये सबके मन में ऐसी ही सुंदर भावनाएं हिलोर ले रही हैं। परमात्मा उन्हे हर खुशी दे।

दिनेशराय द्विवेदी said...

जन्म दिन पर सुंदर भेंट!
पर पोस्ट का शीर्षक में जन्मदिन के स्थान पर जन्मसिन हो रहा है। इसे सुधार लें।

गौतम राजऋषि said...

गुरूदेव के जन्म-दिन पर गीतों के जादूगर की ओर से लाजवाब भेंट...

हमसब की समस्त दुआयें उनके साथ हैं

समयचक्र said...

अच्ची रचना ... पंकज सुबीर जी को जन्मदिन की शुभकामना और बधाई..

अनूप शुक्ल said...

बधाई जन्मदिन की।

Shardula said...

सुबीर जी,
जन्म दिन की बहुत शुभकामनाएँ !

"आपका पथ सजाती रहे रात दिन
ओस भीगी हुई फूल की पांखुरी
भोर गंगाजली से उंड़ेली हुई
सांझ हो अर्चना की भरी आंजुरी
मंत्रपूरित रहे दोपहर आपकी
हो निशा चाँदनी में नहाये हुए
और मौसम सुनाता रहे बस वही
गीत जो आपने गुनगुनाये हुए

आपकी लेखनी से सहज ही खुले
हो कहीं कोई भी एक संभावना"