Thursday, February 9, 2012

जो लिखा था हाथ की रेखाओं में


प्रश्न हम सुलझा नहीं पाये कभी
जो लिखा था हाथ की रेखाओं में
और उसकी गुत्थियों को थाम कर
उत्तरों की राह में भटका किये

ज्ञान गीता का हमारे पास था
सत्य भी था माफ़लेषु का पता
वाधिकारस्ते हमें कर्मण्य है
सौंप कर हमको गया विश्वास था
किन्तु दर्पण की किसी परछाईम से
हम स्वयं को ही भ्रमित करते रहे
एक उजड़े और निर्जन पंथ में
बाल संध्यादीप को धरते रहे

राह में पग भी बढ़ाये, तो सदा
साथ अपने भोर का तारा लिये

भाग्य में जो है लिखा होगा वही
बन मलूकादास यह कहते रहे
जो हवा की झालरी आई निकट
उंगलियाँ उसकी पकड़ बहते रहे
ये ना सोचा एक पल को भी तनिक
और भी कुछ पृष्ठ हैं इस लेख के
काल की गतियां बदल सकते सहज
जोड़ कर निशचय स्वयं संकल्प से

बाँह में भर कर प्रतीक्षा रह गये
कल सुखद संदेश लायेम डाकिये

था भले सीमाओं का अपनी पता
जानते थे नभ पहुँच से दूर है
किन्तु अपने को छलावा दे कहा
दोष विधि का है, समय ही क्रूर है
ये नहीं स्वीकार पाये हम कभी
गंध रह सकती मिली झंझाओं में
हम उसी को शीश पर धरते रहे
जो लिखा था हाथ की रेखाओं में

ताक पर विज्ञान को लटका दिया
तर्क रख छोड़े उठा कर हाशिये

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