Monday, February 14, 2011

मौसम

बर्फ की एक चादर बिछी देख कर आज आते ही शरमा गई चाँदनी


दूध से थी धुली,ओढ़ कर दूधिया रंग का ही दुशाला रही चाँदनी

कांच जैसी जमी इक नदी में लगी चित्र अपना झलकता हुआ देखने

और उस चित्र को मुस्कुराते हुए आपका नाम देने लगी चाँदनी

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कोई भरता रहा सांस ठंडी तभी ये हवा सर्द कुछ और होने लगी

पास शाखाओं के वृक्ष की जब गई देख कर पत्र बिन उनको रोने लगी

और फिर सर्द आहें उठा लीं लगा अपने सीने से कुछ कसमसाते हुए

थी दुखी इसलिए पास आते ही तन में कई नश्तरों को चुभोने लगी.

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याद आने लगी पास उठती हुई पृष्ठ से कल के लेकर के अंगडाइयां

रंग में डूब कर जैसे ठिठकी रहीं सांझ की थीं क्षितिज तक जो अंगनाइयां

द्वार पर आये कुछ सुर भटकते हुए गुनगुनाते हुए इक नयी सी ग़ज़ल

और फिर खोई धुन को लगी ढूँढने, मौन हो रह गईं थीं जो शहनाइयाँ

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