कितने दिन बीते
सूनी आँखों के मरुथल में प्यास लिए जीते
कितने दिन बीते
भाव न उमड़ा करते मन में
इस सूने एकांत विजन में
सावन के भी बादल आते हैं होकर रीते
कितने दिन बीते
नित दिन की बिछती चौसर पर
चलता है गिन गिन कर के घर
मोहरे का बस चल न पाता पर बाजी जीते
कितने दिन बीते
आशंका के विषधर काले
आ अधरों पर डेरा डाले
स्वर न कंठ से बहार आकर बोल सके सीते
पल पल बढ़ते गहन अँधेरे
असमंजस रहता है घेरे
अभिलाषा कान्हा के स्वर में गूंजे फिर गीते
सूनी आँखों के मरुथल में प्यास लिए जीते
कितने दिन बीते
भाव न उमड़ा करते मन में
इस सूने एकांत विजन में
सावन के भी बादल आते हैं होकर रीते
कितने दिन बीते
नित दिन की बिछती चौसर पर
चलता है गिन गिन कर के घर
मोहरे का बस चल न पाता पर बाजी जीते
कितने दिन बीते
आशंका के विषधर काले
आ अधरों पर डेरा डाले
स्वर न कंठ से बहार आकर बोल सके सीते
पल पल बढ़ते गहन अँधेरे
असमंजस रहता है घेरे
अभिलाषा कान्हा के स्वर में गूंजे फिर गीते
1 comment:
khubsurat abhivyakti ,badhai
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