प्रतिक्रियायें कोई दे अथवा
न दे, निर्भर उसी पर
काम रचनाकार का वह धर्म को
अपने निभाये
काम माली का विकसते फूल
क्यारी में सँवारे
ये न सोचे वह कभी जा देव के
द्वारे चढ़ेगा
या किसी के कुन्तलों में एक
दिन होगा सुशोभित
या किसी की डायरी के मध्य
में जाकर रहेगा
जो नियति उसकी, उसे मिल
जायेगा निश्चित यथावत
किसलिये फिर वह दृगों में
आस का काजल लगाये
गीत,कविता छन्द दोहे, और
मुक्तक या कहानी
बात जब नूतन कहेंगे,
पायेंगे तब ही प्रशंसा
सिर्फ़ खानापूर्ति या फिर
महज लिखने को लिखे पर
मिल रही जो टिप्पणी, उसमें
छुपी कुछ और मंशा
सोच अक्सर पूछती है, अर्थ
से वंचित कथन क
लड़खड़ाते पांव को वह किस
तरह रस्ता दिखाये
वाह के मोहताज होकर माँग लेना
तालियों कुछ
या निरर्थक शब्द को पूँजी समझ
कर ऐंठ जाना
एक टॄटा आईने को ही प्रभावित
कर सका है
एक पल ठिठका नहीं ऐसे कथन पर
आ ज़माना
लेखनी पर आप ही आ स्वर्ण की
परतें चढ़ेण्गी
जब कि रचना शब्द आपने वास्ते
खुद ही जुटाये
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